अलगाववादियों से गुपचुप संपर्क साध रही कश्मीर सरकार

राज्य, राष्ट्रीय, फीचर

सरवर काशनी

श्रीनगर, 15 जुलाई (आईएएनएस)| हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की मौत के बाद सुलग रही घाटी के हालात को नियंत्रण में लाने के लिए जम्मू एवं कश्मीर सरकार फूंक-फूंक कर कदम रख रही है। खबर तो यहां तक है कि घाटी में हालात साल 2008 और 2010 की तरह न हों, इसके लिए जम्मू एवं कश्मीर सरकार ने अलगाववादी नेताओं से मुलाकात कर उनकी मदद मांगी है।

सूत्रों ने शुक्रवार को आईएएनएस से कहा कि कश्मीर में नाजुक हालात पर किसी भी अलगाववादी नेतृत्व ने मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती की सरकार के साथ बातचीत करने की जहमत नहीं उठाई। हिंसा में बीते एक सप्ताह के दौरान 38 लोगों की मौत हो चुकी है, जबकि 1,500 से अधिक लोग घायल हुए हैं।

उन्होंने कहा कि अलगाववादी हुर्रियत कांफ्रेंस के उदारवादी व कट्टरपंथी धड़े के अध्यक्षों क्रमश: मीरवाइज उमर फारुख तथा सैयद अली शाह गिलानी के पास सरकार ने दूत भेजे थे।

सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर लिबरेशन फ्रंट (जेकेएलएफ) के प्रमुख यासीन मलिक से भी संपर्क स्थापित करने का प्रयास किया, जो फिलहाल श्रीनगर की एक जेल में बंद हैं।

लेकिन सूत्रों ने कहा है कि पुलिस तथा अर्धसैनिक बलों की गोलीबारी में नागरिकों के मारे जाने के मद्देनजर, इनमें से किसी ने भी लोगों से शांत रहने या प्रदर्शन को वापस लेने की अपील करने पर सहमति नहीं जताई है।

एक सूत्र ने आईएएनएस से कहा, "उन्होंने (अलगाववादियों) असमर्थता जताते हुए कहा है कि घाटी में जो भी हो रहा है, उसपर वे नियंत्रण नहीं कर सकते।"

सूत्र के मुताबिक, अलगाववादी नेताओं ने सरकार से अपने ऊपर लगी पाबंदियों को हटाने, कर्फ्यू हटाने तथा शांति के लिए अपील करने से पहले विरोध मार्च करने की मंजूरी मांगी है।

सरकार ने हालांकि सहमति नहीं जताई है। उसे आशंका है कि ऐसे बिगड़े हालात में अगर विरोध-प्रदर्शन की इजाजत दी गई, तो हालात नियंत्रण से बाहर हो सकते हैं।

बीते 10 जुलाई को जब अशांति परवान चढ़ रही थी, तब सरकार के मुख्य प्रवक्ता तथा कैबिनेट के वरिष्ठ मंत्री नईम अख्तर ने सार्वजनिक तौर पर कहा था कि संकट को समाप्त करने के लिए हमें हुर्रियत कांफ्रेंस की मदद की जरूरत है।

अपने-अपने घरों में नजरबंद गिलानी तथा मीरवाइज ने अलग-अलग साक्षात्कार में आईएएनएस से कहा कि हालात पर उनका नियंत्रण नहीं है, क्योंकि कश्मीर घाटी में वर्तमान में जो हिंसा की लपटें उठी हैं, वह स्वत:स्फूर्त हैं न कि प्रायोजित हैं।

पहचान जाहिर न करने की शर्त पर कुछ राजनीतिक विशेषज्ञों ने आईएएनएस से कहा कि अलगाववादी नेताओं द्वारा हाथ उठाना यह संकेत देता है कि वर्तमान हालात पर उनका कोई नियंत्रण नहीं है या है, तो भी बेहद कम।

एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर ने आईएएनएस से कहा, "यह निराश कश्मीरी युवाओं का बेहद व्यापक नेतृत्वविहीन प्रदर्शन है, जो न केवल राज्य बल्कि खुद के खिलाफ भी खड़े हो रहे हैं। पथराव के बदले गोलियों की उन्हें कोई परवाह नहीं है।"

उन्होंने कहा, "ये युवक सरकार से खफा हैं और धर्मामिभान के झूठे उत्साह (जेहाद) से लबरेज हैं और वे कुछ भी कर रहे हैं।"

प्रोफेसर ने कहा, "यदि कोई उन पर नियंत्रण करने की कोशिश करता है, तो वे उसके खिलाफ खड़े हो जाएंगे। मुझे नहीं लगता कि अलगाववादी नेता उनपर नियंत्रण कर सकते हैं।"

अतीत में एक अलगाववादी गुट में रहे एक अन्य राजनीतिक विशेषज्ञ के मुताबिक, "छह दिनों में लगभग 40 लोग मारे जा चुके हैं। कुछ समय बाद शहीदों की संख्या और बढ़ जाएगी। ऐसे हालात से अलगाववादियों को लाभ हो सकता है। यह एकमात्र विकल्प है और निश्चित तौर पर धीरे-धीरे यह स्थिति उनके हाथ से निकल जाएगी। लेकिन तब वे मोलभाव करने की स्थिति में नहीं होंगे। मुझे लगता है कि यह सही समय है, जब वे सरकार के साथ प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से मिलकर काम करें और सड़कों पर हो रहे प्रदर्शनों पर नियंत्रण करें या इसके लिए प्रयास करें।"

Back to Top