राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित हुए जीएसटी विधेयक
राष्ट्रीय Aug 03, 2016नई दिल्ली, 3 अगस्त (आईएएनएस)| लंबे से लंबित वस्तु एवं सेवा कर विधेयक से संबंधित संविधान संशोधन विधेयक बुधवार को राज्यसभा में सर्वसम्मति से पारित हो गया। इसके समर्थन में 203 मत पड़े। इसके साथ ही देश भर में जीएसटी व्यवस्था लागू करने का रास्ता साफ हो गया है। इस विधेयक को आजादी के बाद सबसे बड़े कर सुधार के रूप में देखा जा रहा है।
राज्यसभा में देर शाम तक करीब छह घंटे की चर्चा के बाद इस पर मतदान किया गया।
कांग्रेस इसे धन विधेयक के बजाय वित्त विधेयक के रूप में लाने की मांग कर रही थी। इस पर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि इस पर कोई भी फैसला सभी पार्टियों से बात करने के बाद ही किया जाएगा।
विधेयक पर बहस शुरू करते हुए केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, "देश के इतिहास में यह सबसे बड़ा कर सुधार होगा। इसीलिए जीएसटी पर राजनीतिक सहमति बनाया जाना बेहद जरूरी है। जीएसटी को लागू कर देश की अर्थव्यवस्था का प्रबंधन सर्वश्रेष्ठ तरीके से किया जा सकेगा, क्योंकि यह राज्यों को सशक्त बनाएगा और राज्यों तथा केंद्र के राजस्व में इजाफा करेगा। इस समय चल रहे आर्थिक संकट के काल में यह देश की अर्थव्यवस्था में जान फूंकने वाला साबित होगा।"
उल्लेखनीय है कि जीएसटी के तहत पूरे देश में एकसमान कर व्यवस्था लागू हो जाएगी और राज्यों के सभी कर हट जाएंगे। जीएसटी कर प्रणाली में केंद्रीय उत्पाद शुल्क, राज्यों के वैट, मनोरंजन, प्रवेश और अन्य कर खत्म हो जाएंगे और एक निश्चित दर पर जीएसटी कर लागू हो जाएगा।
शराब और पेट्रोलियम उत्पादों को हालांकि जीएसटी की सीमा से बाहर रखा गया है।
हालांकि विधेयक को कानून की शक्ल लेने के लिए अभी कम से कम 50 फीसदी राज्यों की मंजूरी हासिल करनी होगी। इसके लिए विधेयक को फिर से लोकसभा में पेश किया जाएगा।
जीएसटी विधेयक पर बहस में हिस्सा लेते हुए पूर्व वित्त मंत्री कांग्रेस सांसद पी. चिदंबरम ने कहा कि जीएसटी की दर प्रधान आर्थिक सलाहकार द्वारा प्रस्तावित 18 फीसदी से अधिक नहीं होना चाहिए।
चिदंबरम ने कहा, "कांग्रेस जीएसटी विचार का समर्थन करती है। जीएसटी की दर 18 फीसदी से ज्यादा नहीं होना चाहिए। हमारी पार्टी पूरे देश में जागरूकता अभियान चालकर मानक दर के लिए समर्थन हासिल करेगी। इसे उचित, महंगाई न बढ़ाने वाला, केंद्र और राज्यों के राजस्व में कटौती न करने वाला और आम जनता के लिए स्वीकार्य होना चाहिए।"
विधेयक पर मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस की सहमति हासिल करने के लिए सरकार को कांग्रेस की दो शर्ते माननी पड़ीं- एक प्रतिशत का अतिरिक्त कर हटाना पड़ा और विवाद निवारण प्रणाली को शक्तिशाली बनाने का वादा करना पड़ा।
हालांकि जीएसटी विधेयक में ही जीएसटी कर की दर को निर्धारित करने की मांग स्वीकार नहीं की गई।
जीएसटी दर निर्धारण पर जेटली ने कहा कि इसका निर्धारण जीएसटी परिषद करेगी, जिसमें केंद्र और सभी राज्य सरकारों के प्रतिनिधि शामिल हैं।
उन्होंने कहा, "हमें जनता के प्रति राज्यों की जिम्मेदारी पर विश्वास करना चाहिए।"
उल्लेखनीय है कि जीएसटी विधेयक का प्रस्ताव पहली बार 2003 में सामने आया, हालांकि उसके सात साल बाद पहली बार औपचारिक तौर पर इसे संसद में पेश किया गया।
जेटली ने कहा, "अगर हमने कांग्रेस द्वारा तैयार जीएसटी विधेयक आज सदन के पटल पर रखा होता तो एक भी राज्य इस पर अपनी सहमति नहीं देता।"
लोकसभा चुनाव-2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में नई सरकार बनने के बाद इस विधेयक को बड़े संशोधन के साथ 19 दिसंबर, 2014 को लोकसभा में पेश किया गया। लोकसभा में जीएसटी विधेयक छह मई, 2015 को पारित हुआ।
इसके बाद विधेयक को राज्य सभा की प्रवर समिति के पास समीक्षा के लिए भेजा गया, जिसने 22 जुलाई, 2015 को अपनी रिपोर्ट दी।
विधेयक पर चर्चा के दौरान मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेता सीताराम येचुरी ने कहा राज्यों के अधिकार की रक्षा की मांग की।
उन्होंने कहा, "24 फीसदी का जीएसटी देश की अधिकांश जनता की कमर तोड़ देगा। विवाद निवारण के लिए व्यापक विचार की जरूरत है और विवाद निवारण प्रणाली को बहुत ही स्पष्ट बनाना होगा।"
येचुरी ने कहा, "क्या हम चाहते हैं कि केंद्र के पास राज्य भीख का कटोरा लेकर जाएं। देश का संघीय ढांटा खत्म नहीं होना चाहिए। हमारे संविधान की संप्रभुता लोग हैं।"
इस पर जेटली ने कहा, "भारत राज्यों का कोई संगठन नहीं है बल्कि राज्यों का संघ है। जीएसटी के लिए राज्य अपनी शक्तियां नहीं छोड़ रहे हैं, बल्कि वे अधिकारों के इस्तेमाल का हिस्सा बनने जा रहे हैं। केंद्र और राज्य एकसाथ बैठेंगे और दोनों के लिए एक जैसा कर ढांचा होगा।"
एआईएडीएमके ने इस विधेयक के विरोध में सदन से बहिर्गमन किया।