दिल्ली सरकार नहीं, उप राज्यपाल प्रधान : उच्च न्यायालय

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नई दिल्ली, 4 अगस्त (आईएएनएस)| दिल्ली में प्रशासनिक शक्तियों को लेकर दिल्ली सरकार और उप राज्यपाल के बीच चल रही जंग पर दिल्ली उच्च न्यायालय ने अपना फैसला सुनाया है। उच्च न्यायालय ने गुरुवार को अरविंद केजरीवाल सरकार को करारा झटका देते हुए अपने फैसले में कहा कि उप राज्यपाल दिल्ली सरकार की मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह लेने के लिए बाध्य नहीं हैं। आप सरकार ने इस फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील करने का फैसला किया है।

मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति जी. रोहिणी और न्यायमूर्ति जयंत नाथ की पीठ ने फैसले में कहा कि दिल्ली सरकार की मंत्रिपरिषद के फैसलों के बारे में उप राज्यपाल को सूचित करना जरूरी है और अगर उप राज्यपाल मुद्दे पर अलग रुख रखते हैं, तो केंद्र सरकार को इसकी सूचना देना जरूरी है।

अदालत ने दिल्ली के प्रशासन पर सरकार के मुकाबले उप राज्यपाल को प्रधानता देते हुए कहा, "उप राज्यपाल से चर्चा के बिना नीति निर्देश जारी नहीं किए जा सकते।"

अदालत ने गृह मंत्रालय की अधिसूचना के पक्ष में फैसला सुनाया जिसमें कहा गया था कि भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) केंद्र सरकार के अधिकारियों के खिलाफ जांच शुरू नहीं कर सकती और उसकी शक्ति केवल दिल्ली सरकार के अधिकारियों की जांच तक ही सीमित है।

खंडपीठ ने केंद्रीय सरकारी अधिकारियों की नियुक्ति के मामले में अरविंद केजरीवाल सरकार की शक्तियों को सीमित करते हुए कहा कि 'सेवा मामले' दिल्ली विधानसभा के अधिकार क्षेत्र से बाहर हैं।

अदालत ने दिल्ली सरकार द्वारा परिवहन विभाग में सीएनजी फिटनेस प्रमाण पत्र देने से संबंधित काम के सभी पहलुओं पर गौर करने के लिए गठित जांच आयोग और दिल्ली और जिला क्रिकेट संघ के कामकाज में अनियमितताओं के संबंध में आरोपों की जांच के लिए गठित जांच आयोग को 'अवैध' करार देते हुए इन्हें रद्द कर दिया है, क्योंकि इन्हें उप राज्यपाल की सहमति के बिना गठित किया गया था।

अदालत ने बीएसईएस राजधानी पावर लिमिटेड, बीएसईएस यमुना पावर लिमिटेड और टाटा पावर दिल्ली डिस्ट्रीब्यूशन लिमिटेड के बोर्ड पर दिल्ली सरकार के नामित निदेशकों की नियुक्ति को भी रद्द कर दिया क्योंकि यह भी उप राज्यपाल की सहमति के बिना किया गया था।

पीठ ने विशेष लोक अभियोजक (एसपीपी) की नियुक्ति के मुद्दे पर कहा कि हालांकि उप राज्यपाल उनकी नियुक्ति के लिए सक्षम हैं, लेकिन ऐसी कार्रवाई मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर ही की जानी चाहिए।

अदालत ने यह भी कहा कि अनिर्धारित बिजली कटौती के मामले में दिल्ली विद्युत नियामक आयोग को उपभोक्ताओं को क्षतिपूर्ति करने का दिल्ली सरकार का निर्देश 'अवैध' है, क्योंकि उप राज्यपाल की सहमति के बिना ऐसे नीति निर्देश जारी नहीं किए जा सकते।

अदालत का यह फैसला राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों की नियुक्ति के अधिकार और अन्य मुद्दों को लेकर दिल्ली के उप राज्यपाल नजीब जंग और दिल्ली में सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी (आप) सरकार के बीच टकराव से संबंधित नौ अलग-अलग याचिकाओं के मद्देनजर आया है।

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