हरियाणा : 85 साल से लटके टीले के विवाद को निपटाने की कवायद

राज्य, फीचर

जयदीप सरीन

एक प्राचीन टीला, जहां सात दशक पहले पाकिस्तान से पलायन कर आए लोग रह रहे थे, वह सैकड़ों लोगों का आशियाना बना रहेगा। हरियाणा सरकार ने लंबे समय से चल रहे टीले के विवाद को सुलझाने की दिशा में कदम बढ़ा दिया है।

थेर नाम का यह टीला सिरसा जिले में है। यह दशकों से सैकड़ों परिवारों का घर बना हुआ है। हरियाणा की भाजपा सरकार ने इसे अब इन लोगों के पक्ष में गैर अधिसूचित (डि-नोटिफाई) कर रही है।

मुख्यमंत्री के राजनीतिक सलाहकार जगदीश चोपड़ा ने कहा, "हरियाणा सरकार ने सिरसा के थेर टीले के इस 85 साल पुराने विवाद को निपटाने का मन बनाया है। इसे पहले की सरकारों ने विवाद का मुद्दा बना दिया था। थेर टीले को संरक्षित क्षेत्र से हटाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। राज्य सरकार इस संबंध में एक सार्वजनिक सूचना भी इसके लिए जारी की जा चुकी है।"

चोपड़ा ने कहा, "इससे हजारों परेशान और असहाय लोगों ने राहत की सांस ली है, जो टीले पर दशकों से रह रहें हैं। अब उन्हें वहां से विस्थापन और हटाए जाने का डर नहीं रहेगा, आजीविका छिनने का डर नहीं रहेगा। यह समस्या दशकों से लटकी पड़ी है।"

टीले की समस्या की शुरुआत एक अधिसूचना से हुई थी। इसे 85 साल पहले पुरातत्व विभाग ने जारी किया था और इसमें टीले को एक संरक्षित क्षेत्र कहा गया था। यह देश के स्वतंत्र होने से पहले की घटना है।

विभाजन के समय, सैकड़ों परिवार पाकिस्तान से हरियाणा आए और उनमें से कई सिरसा जिले में बस गए। इनमें से ज्यादातर आर्थिक रूप से कमजोर थे और इन्होंने थेर टीले को अपना नया घर बना लिया।

यह टीला सिरसा कस्बे के दक्षिण-पूर्व में है। यह पहले की अधिसूचना की वजह से तकनीकी रूप से केंद्र सरकार के संरक्षण में है।

हरियाणा पर्यटन विभाग की आधिकारिक वेबसाइट बताती है कि सिरसा हरियाणा के पुराने कस्बों में से एक है। यह प्राचीन नगरी तक्षशिला के रास्ते पर है। इसका वर्तमान नाम पुराने नाम सरिशिका से उत्पन्न हुआ है। इसका जिक्र महाभारत में, पाणिनी के अष्टाध्यायी में और बौद्ध लेखन दिव्यावदन में है। वेबसाइट में कहा गया है कि संभवत: सरिशिका इसी टीले में दफन हो गया होगा।

वेबसाइट के मुताबिक, 15 मीटर की ऊंचाई वाला टीला 5 किलोमीटर की परिधि में फैला है। अब तक यहां पुरातत्व विभाग ने कोई खनन कार्य नहीं किया गया है। पत्थर की मूर्तियां, सिक्के, शिलालेख, बर्तनों के टुकड़े और अन्य प्राचीन वस्तुएं यहां सतह के अन्वेषण से संग्रहित की गई हैं। यह चीजें इसके पुरातत्वाविक संदर्भ को बताती हैं।

मौजूदा समय में थेर टीले पर तीन हजार से ज्यादा घर हैं यहां की आबादी करीब 20 हजार है।

साल 2007 में पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट में जनहित याचिका (पीआईएल) दाखिल की गई थी। इसमें अदालत ने थेर टीले के निवासियों के खिलाफ फैसला दिया।

चोपड़ा कहते हैं कि अदालत ने सरकार को थेर टीला खाली कराने का आदेश दिया। लेकिन, पहले की सरकारों ने यहां के लोगों की थोड़ी भी परवाह नहीं की।

चोपड़ा ने कहा कि भाजपा सरकार के गठन के बाद टीले का मामला इसके सामने आया। अपील दायर करने का समय बीत चुका था। इसलिए सरकार ने इसके लिए एक समिति बनाई जिसमें पुरातत्व सर्वे विभाग, हरियाणा पुरातत्व विभाग और कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के पुरातत्व विभाग के सदस्य शामिल थे।

समिति ने अपनी रिपोर्ट सरकार को सौंप दी है। समिति ने एकमत से स्वीकार किया कि बहुत से लोग थेर टीले पर रह रहे हैं, इसका थोड़ा भाग ही खाली है जिसका इस्तेमाल पुरातत्व विभाग खुदाई के लिए नहीं कर सकता।

हाल में ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की अध्यक्षता में हुई बैठक में यह तय किया गया कि इस जमीन का इस्तेमाल पुरातत्व विभाग के उद्देश्यों के लिए संभव नहीं है। इस वजह से एएसआई को सूचना देने के बाद इस क्षेत्र को गैर अधिसूचित कर दिया जाएगा।

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