मैं जीवन में पांच बार रोया हूं : मिल्खा सिंह

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नई दिल्ली, 4 जुलाई (आईएएनएस)| 'फ्लाइंग सिख' के नाम से दिग्गज धावक मिल्खा सिंह का कहना है कि वह अपने जीवन में पांच बार रोये हैं और 1947 में विभाजन के समय अपनी आंखों के सामने अपने परिजनों की हत्या होते देखना उनके लिए दिल दहला देने वाला पल था।

मिल्खा ने बताया कि दूसरी बार उनके लिए सबसे निराशाजनक समय तब रहा, जब वह 1960 रोम ओलम्पिक खेल में मामूली अंतर से पदक हासिल करने से चूक गए।

पिछले सप्ताह एक समारोह में अपने जीवन के खट्टे-मीठे पलों को साझा करते हुए मिल्खा ने दर्शकों को बताया, "मिल्खा अपने जीवन में केवल पांच बार रोया है। पहले तीन बार जब रोया था, तो वे काफी दुखदायी क्षण थे और बाकी दो बार आंखों में खुशी का आंसू थे।"

उन्होंने कहा, "मेरे लिए सबसे कड़वी याद है विभाजन के वक्त सांप्रदायिक हिंसा में अपने माता-पिता, भाई और दो बहनों को खोना।"

मिल्खा ने कहा कि 1947 में विभाजन के वक्त उनके परिवार के सदस्यों की उनकी आंखों के सामने ही हत्या कर दी गई। वह उस दौरान 16 वर्ष के थे।

उन्होंने कहा, "हम अपना गांव (गोविंदपुरा, आज के पाकिस्तानी पंजाब में मुजफ्फरगढ़ शहर से कुछ दूर पर बसा गांव) नहीं छोड़ना चाहते थे। जब हमने विरोध किया तो इसका अंजाम विभाजन के कुरुप सत्य के रूप में हमें भुगतना पड़ा। चारो तरफ खूनखराबा था। उस वक्त मैं पहली बार रोया था।"

उन्होंने कहा कि विभाजन के बाद जब वह दिल्ली पहुंचे, तो पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन पर उन्होंने कई शव देखे। उनके पास खाने के लिए खाना और रहने के लिए छत नहीं थी। उन्होंने कहा कि केवल दो लोगों (जवाहर लाल नेहरू और मोहम्मद अली जिन्ना) के बीच प्रधानमंत्री पद के लिए हुई भिड़ंत के कारण यह सब हुआ, देश का विभाजन हुआ।

मिल्खा ने कहा कि 1960 के रोम ओलंपिक में एक गलती के कारण वह चार सौ मीटर रेस में सेकेंड के सौवें हिस्से से पदक चूक गए। उस वक्त भी वह रो पड़े थे।

मिल्खा ने कहा कि वह 1960 में पाकिस्तान में एक दौड़ में हिस्सा लेने जाना नहीं चाहते थे। लेकिन, प्रधानमंत्री नेहरू के समझाने पर वह इसके लिए राजी हो गए। उनका मुकाबला एशिया के सबसे तेज धावक माने जाने वाले अब्दुल खालिक से था। इसमें जीत हासिल करने के बाद उन्हें उस वक्त पाकिस्तान के राष्ट्रपति फील्ड मार्शल अय्यूब खान की ओर से 'फ्लाइंग सिख' का नाम मिला।

उन्होंने कहा कि खालिक को हराने के बाद भी वह रो पड़े थे, लेकिन यह आंसू खुशी के थे।

1958 राष्ट्रमंडल खेलों में स्वर्ण पदक मिलने के बाद मिल्खा सिंह को पद्मश्री से सम्मानित किया गया। उन्होंने बताया कि महारानी के हाथों स्वर्ण पदक हासिल करने के समय भी उनकी आंखें खुशी से छलक पड़ी थीं।

मिल्खा ने एक बेहतरीन धावक बनने का श्रेय भारतीय सेना को दिया। सेना में भर्ती होने के लिए उन्होंने कई बार प्रयास किया। तीन बार उन्हें भर्ती प्रक्रिया में ही बाहर कर दिया गया था, लेकिन आखिरकार वह इसमें प्रवेश करने में सफल रहे। सेना में भर्ती होने के बाद मिली सुविधाओं से उन्हें एक धावक के रूप में अपना करियर बनाने में काफी मदद मिली।

राकेश ओमप्रकाश मेहरा निर्देशित फिल्म 'भाग मिल्खा भाग' दिग्गज धावक के जीवन पर आधारित थी। यह फिल्म 2013 में रिलीज हुई थी। अभिनेता फरहान अख्तर ने फिल्म में मिल्खा सिंह की भूमिका निभाई थी।

मिल्खा सिंह ने कहा, "फिल्म देखने के बाद मेरी आंखों से आंसू जारी हो गए। फरहान अख्तर ने मुझसे पूछा कि मैं रो क्यों रहा हूं। मैंने उनसे कहा कि इस फिल्म में मुझे अपना पूरा जीवन दिखाई दे गया। इससे मैं भावुक हो उठा।"

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