मप्र में अच्छी बारिश, फिर भी गहराएगा जल संकट : सिंह

मध्यप्रदेश, फीचर, पर्यावरण, Interview

संदीप पौराणिक
भोपाल, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)। मध्य प्रदेश में बीते वर्षो के मुकाबले ज्यादा बारिश हुई है, नदी-तालाब लबालब है, यह स्थितियां मन को संतोष देने वाली हो सकती हैं, मगर पर्यावरण के जानकार इसे आगामी संकट से दूर रखने के लिए पर्याप्त नहीं मानते हैं।

जल-जन जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक संजय सिंह का कहना है कि राज्य में बारिश भले ही अच्छी हुई हो, मगर आने वाले दिनों में जल संकट कम होगा, ऐसा नहीं है, क्योंकि पानी रोकने के सरकार ने इंतजाम ही नहीं किए हैं।

राजधानी भोपाल में ग्लोबल हंगर इंडेक्स केा लेकर आयेाजित एक कार्यक्रम में हिस्सा लेने आए सिंह ने आईएएनएस से कहा, "राज्य में लगातार वनाच्छादित क्षेत्र कम हो रहा है, नदियों से उत्खनन का दौर जारी है, पहाड़ों को खत्म किया जा रहा है, इसका सीधा असर जलवायु परिवर्तन पर पड़ रहा है।"

उन्होंने आगे कहा, "मध्य प्रदेश सरकार पर्यावरण संरक्षण, नदी संरक्षण के दावे तो करती है, मगर जमीनी स्तर पर क्या हो रहा है यह किसी से छुपा नहीं है। सरकार की अदूरदर्शिता का प्रमाण सिंहस्थ कुंभ में क्षिप्रा नदी को प्रवाहमान बनाने के लिए नर्मदा नदी से पाइपलाइन के जरिए पानी को लाना पड़ा।

उन्होंने कहा कि सरकार चाहती तो पांच साल पहले नदी को प्रवाहमान बनाने की योजना बनाती, नदी मे जगह-जगह कुंड बनाती, जिससे नदी में हर समय पानी होता, वहीं गंदे नालों को इससे मिलने से रोकती। इससे क्षिप्रा निर्मल व प्रवाहमान होती, मगर ऐसा सरकार ने किया नहीं, क्योंकि मंशा तो कुछ और ही थी।"

राज्य की बारिश के आंकड़ों पर नजर दौड़ाएं तो एक बात पता चलती है कि यहां औसत बारिश 952 मिलीमीटर होती है, मगर इस बार इससे कहीं ज्यादा 1100 मिलीमीटर बारिश दर्ज की गई है। इस तरह औसत से लगभग 15 फीसदी ज्यादा।

राज्य की बारिश के सवाल पर सिंह का कहना है कि यह बात सही है कि बारिश औसत से ज्यादा हुई है, मगर ज्यादा बारिश होना इस बात की गारंटी नहीं है कि आगामी दिनों में पानी का संकट नहीं गहराएगा, सिंचाई के लिए पर्याप्त पानी मिल जाएगा और पेयजल संकट गहराने पर पलायन नहीं होगा। यह सब इस बार भी होगा, क्योंकि बारिश का काल चार माह होता है, मगर यह बारिश चंद दिनों में हुई। यही कारण रहा कि सूखा के लिए बदनाम बुंदेलखंड और विंध्य क्षेत्र में बाढ़ के हालात बने।

वे आगे कहते हैं कि जब बारिश चार माह की अवधि में होती है तो जमीन के भीतर पानी पहुंचता है, नदियों से तेजी से पानी बह नहीं पाता। इस बार कम दिनों की बारिश में पानी तो ज्यादा गिरा, जो जमीन की भीतर नहीं गया और अधिकांश बह गया। इससे एक तरफ जहां मिट्टी का क्षरण हुआ तो दूसरी ओर जल संरचनाएं क्षतिग्रस्त भी हुई हैं। ज्यादा बारिश ने फ सलों को भी चौपट किया।

सिंह का मानना है कि राज्य में पानी को रोकने के लिए बारिश पूर्व जो तैयारियां सरकार की ओर से की जानी चाहिए थी, वह नहीं की गई, जल संरचनाओं की सफाई नहीं कराई गई और नई संरचनाओं का उतनी तादाद में निर्माण नहीं किया गया, जिसकी जरूरत थी। यह कोशिश होती तो एक तरफ जहां पानी जमीन के भीतर जाता, तो वहीं जल संरचनाओं की क्षमता बढ़ने से आगामी दिनों की जरूरतों को भी पूरा करता।

बुंदेलखंड की स्थिति को लेकर प्यूपिल साइंस इंस्टीट्यूट देहरादून और सेंटल रिसर्च इंस्टीटयूट फॉर डाई लैंड एग्रीकल्चर हैदराबाद द्वारा किए गए शोध का जिक्र करते हुए सिंह ने कहा कि यह दोनों शोध बताते हैं कि बुंदेलखंड में जलवायु परिवर्तन का असर ज्यादा है, यहां रेड हीट बढ़ रही है, इसके चलते इस क्षेत्र में बाढ़ व सुखाड़ का असर कम नहीं होने वाला है।

ऐसा इसलिए, क्योंकि यहां पहाड़ी इलाका है तो वनाच्छादित क्षेत्र कम हुआ है। इससे बचना है तो सरकार को वन बढ़ाने, नदियों को प्रवाहमान बनाने के लिए खनन को रोकने और पहाड़ों को बचाना होगा।

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