अनपढ़ दुखिन बाई ने स्कूल संवारने में लगा दिया जीवन
राज्य, राष्ट्रीय, फीचर Aug 17, 2016एकान्त प्रिय चौहान
अपने और अपनों के लिए तो सभी जीते हैं, लेकिन कुछ शख्सियत ऐसी होती है, जो खुद अभावग्रस्त होते हुए भी दूसरों के लिए सुविधाओं का सेतु तैयार कर अपने नि:स्वार्थ सहयोग से संसार को आलोकित करती है। ऐसी ही हैं दुखिन बाई यादव, जिन्हें स्वतंत्रता दिवस पर सम्मानित किया गया।
धमतरी विकासखंड की ग्राम पंचायत सेमरा-बी में रहने वाली दुखिन बाई यादव ने अपने जीवन को गांव और स्कूल के विकास में समर्पित कर दिया है, वह भी बिना किसी व्यक्तिगत लालसा से। उनके योगदान को देखते हुए 15 अगस्त को उन्हें जिला प्रशासन ने सम्मानित किया।
आधारभूत सुविधाओं के लिए सरकारी मदद की बाट जोह रहे लोगों के लिए वह 'दुखिन दीदी' हैं, जिन्होंने अपने सीमित संसाधनों और अल्प आय के बाद भी स्कूल व अन्य शासकीय संस्थाओं की सुविधाओं में विस्तार करने में अपनी जिंदगी झोंक दी।
सांवला रंग, औसत कद-काठी, झुरीर्दार त्वचा, हड्डियों की पकड़ छोड़ती कमजोर मांसपेशियां दुखिन दीदी के आसमान सरीखे ऊंचे और नेक इरादों को पस्त करने में असमर्थ हैं। ग्राम सेमरा-बी में मिडिल स्कूल परिसर के सामने छोटे से खदरनुमा होटल में बड़ा-भजिया और चाय बेचती हैं 65 साल की दुखिन बाई।
वह गांव ही नहीं, क्षेत्र के लिए आदर्श बन चुकी हैं। उनके सेवाभाव को देखकर ग्रामीणों ने भी आगे आकर पंचायत को सशक्त और मजबूत बनाने में भरपूर सहयोग दिया। परित्यक्ता होने के बाद जीवन के एकाकीपन को सकारात्मक दिशा देते हुए दुखिन बाई ने एक तरह से गांव भर के बच्चों को अघोषित तौर पर गोद ले रखा है।
वह कहती हैं, "पैसे के अभाव में मैं पढ़ नहीं पाई, लेकिन गांव के हर बच्चे को अपना मानती हूं। उनकी पढ़ाई में कोई कमी या कोरकसर न रह जाए, इसलिए मेरी हर कोशिश उनकी भलाई के लिए होती है।"
स्कूल के लिए दुखिन दीदी के योगदानों को गिनने बैठें, तो फेहरिस्त काफी लंबी हो जाएगी। फिर भी स्कूल परिसर में घुसते ही उनके योगदान की मिसालें दृष्टिगोचर होती हैं।
स्कूल में पेयजल का अभाव था। इसे देखते हुए वर्ष 2013 में दुखिन बाई ने अपने गुल्लक को तोड़कर उसमें जमा पूरी राशि 22000 को शाला प्रबंधन समिति को दान कर दिया। इतना ही नहीं, वर्ष 2014 में दो हजार रुपये दान कर मां सरस्वती की प्रतिमा स्थापित कराई। जब उन्हें बताया गया कि दूषित पानी से बच्चों को पीलिया, दस्त और उल्टी जैसी जानलेवा बीमारियां होती हैं, तो उन्होंने वर्ष 2015 में 8000 रुपये दान देकर वाटर फिल्टर का इंतजाम कराया।
इसके अलावा स्कूल में एक बेड की भी व्यवस्था कराई, जिस पर बीमार बच्चे को लिटाकर उसे तात्कालिक राहत दिलाई जा सके। साथ ही फस्र्ट एड बॉक्स, विज्ञान प्रयोगशाला की सामग्री आदि का इंतजाम किया। यानी चाय-नाश्ते के होटल के छोटे से धंधे से होने वाले मुनाफे को दुखिन ने दान कर दिया।
इन सबके बाद उन्होंने प्रतिदिन 20 रुपये के मान से स्कूल में आर.डी. खाता खुलवाया, जो अब परिपक्व होने वाला है। यहां तक कि स्कूल और पंचायत भवन में वह प्रतिदिन मुफ्त में चाय-नाश्ता भी बांटती हैं।
इन सबसे आपको क्या मिलता है? पूछने पर दुखिन दीदी हंसते हुए कहती हैं, "मैं यह सब अपनी खुशी के लिए ही तो करती हूं। मेरे छोटे-छोटे प्रयासों से अगर इन बच्चों और शिक्षकों को बड़ी खुशी हासिल होती है तो मैं समझती हूं कि मेरा जीवन सफल हो गया।"
खुले में शौच से मुक्त बन चुके ग्राम सेमरा-बी के स्कूल को आदर्श स्कूल बनाने में दुखिन दीदी का बड़ा योगदान रहा है। राष्ट्रीय पर्व के अलावा शिक्षक दिवस, बाल दिवस जैसे आयोजनों में उनकी सक्रिय सहभागिता रहती है। ऐसे कार्यक्रमों में वे अनिवार्य रूप से शामिल होकर वह लोगों को प्रोत्साहित करती हैं।
दुखिन बाई के आह्वान पर पूरा गांव तत्परता से आगे आकर एकजुटता के साथ समस्याओं को समाधान करता है। सामुदायिक सहभागिता से उन्होंने स्वयं के बूते स्कूल में नवाचार स्थापित करने में कामयाबी हासिल की। उनकी इस प्रेरणा से ग्रामीणजन भी दानदाता के तौर पर आगे आए।
पंचायत के सहयोग से बोर खनन, रोपण किए गए पौधों के ट्री गॉर्ड, शौचालयों में टाइल्स, वाश-बेसिन और पीने के पानी के लिए टोंटीयुक्त नल, दीवार पर आकर्षक और रोचक चित्रकारी। वास्तव में दुखिन दीदी के नि:स्वार्थ सेवाभाव और अप्रत्याशित योगदान से सेमरा-बी नई इबारत गढ़ने की ओर बढ़ रहा है।
कलेक्टर डॉ. सी.आर. प्रसन्ना ने 14 अगस्त की दोपहर में सेमरा-बी गांव जाकर बहुचर्चित वृद्धा दुखिन बाई से भेंट की और उन्हें स्वतंत्रता दिवस के मुख्य समारोह में आने का आमंत्रण दिया था।
अपने व्यक्तिगत आर्थिक सहयोग से स्कूल प्रबंधन में विशेष योगदान देने वाली दुखिन को 15 अगस्त को शिक्षा के क्षेत्र में सामुदायिक सहभागिता के लिए सम्मानित किया गया। उन्हें यह सम्मान प्रदेश के पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री अजय चंद्राकर ने प्रदान किया।