शिक्षा के निजीकरण ने हमको “सायबर कुली” से अधिक कुछ न बनाया- जयति घोष

राष्ट्रीय, स्टूडेंट-यूथ

भोपाल: 9 जुलाई/ ये वर्ष निजीकरण और वैश्वीकरण की प्रक्रिया की शुरुआत का 25 वां वर्ष है और शिक्षा का इन गुज़रे 25 वर्षों में जो हाल हुआ वह बहुत ही निराशाजनक है। विशेषकर विगत 8 से 10 वर्षों में जितनी तीव्रता से शिक्षा का निजीकरण बढ़ा है वह निश्चित ही भविष्य में कई दुष्प्रभाव उपजायेगा। उक्त विचार जानीमानी अर्थशास्त्री और स्तंभकार सुश्री जयती घोष ने आज भोपाल में व्यक्त किये। सुश्री घोष भारत ज्ञान विज्ञान समिति द्वारा आयोजित तीसरी विनोद रायना स्मृति व्याख्यानमाला के अंतर्गत ‘‘वैश्वीकरण, निजीकरण और भारत का भविष्य’’ विषय पर बोल रहीं थीं सुश्री घोष ने कहा कि शिक्षा विकास के लिए आवश्यक है इससे कोई विरोध नहीं लेकिन शिक्षा लोकतंत्र की रक्षा के लिए भी उतनी ही ज़रूरी है और आज ये ज़रूरत पहले से कहीं अधिक है। जयति घोष ने बाताया कि हमारे यहाँ अधिकतर लोगों को तो ये पता ही नहीं होता कि शिक्षा की दिशा और गुणवत्ता क्या होना चाहिए और बाज़ार की आवश्यकताओं के अनुसार वे अपने बच्चों को शिक्षा दिलवाना चाहते हैं। सरकार ने शिक्षा का अधिकार कानून ज़रूर बना दिया लेकिन इसको लागू करने की मंशा न पहली सरकार की थी न हीं इस सरकार की है इसीलिए इस हेतु निर्धारित बजट में लगातार कटौतियां की जाती हैं।

सुश्री जयति ने कहा कि शिक्षा में अब भगवाकरण के ख़तरे पहले से कहीं अधिक बढे हैं जो देश की बहुलता के लिए समस्या पैदा करने की संभावनाओं को बढाते हैं। उच्च शिक्षा के बेहतरीन संस्थानों पर विगत दिनों तीव्रतम हमले किये गए जो एक तरह से सरकारी तंत्र के शिक्षा संस्थानों को बदनाम करने और उच्च शिक्षा को निजी हाथों में सौपने की साजिशों का ही हिस्सा है। जो बेहतरीन शिक्षा संस्थानों के रूप में पूरी दुनिया में जाने जाते हैं उन्हें देशद्रोह के इलज़ाम देकर बदनाम किया जा रहा है ताकि लोग निजी संस्थानों की ओर जाएँ और सृजनात्मक सोच से भी दूर हों। एक तरह से हिंदुत्व और राष्ट्रवाद दोनों को थोपने के प्रयास हैं। उन्होंने कहा कि निजीकरण के पिछलग्गू बन कर हम ज्यादा कुछ हासिल तो कर न सके बल्कि “सायबर कुली”मात्र बन कर रह गए हैं। जितना अधिक निजीकरण होगा उतना ही अधिक हम गुणवत्तापूर्ण शिक्षा से दूर होंगे और लोगों पर आर्थिक भार बढेगा।

कार्यक्रम में विशिष्ट अतिथी के तौर पर अंशु वैश ने भी अपने विचार रखे और आशा मिश्रा ने आरम्भ में विषय प्रवर्तन किया। कार्यक्रम की अध्यक्षता श्याम बोहरे ने की।

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