व्यापारियों को 'मुनीम' बना देगा जीएसटी!
केंद्र की राजग सरकार का दावा है कि वस्तु एवं सेवा कर की नई प्रणाली 'जीएसटी संशोधित विधेयक-2015' संसद से पारित हो जाने से देश में विदेशी निवेश को आकर्षित करना आसान हो जाएगा। नई कर प्रणाली से, करों की समानता से भ्रष्टाचार और राजकोषीय घाटे में कमी आएगी। साथ ही व्यापारी वर्ग के कर चुकाने पर सरकार की सीधी नजर भी बनी रहेगी।
आशंकाओं के बीच अलग-अलग राजनीतिक दलों और खेमों में बंटे व्यापारी संगठन और उनके नेता जीएसटी के खिलाफ देश और राज्यों में केंद्र के विरुद्ध एकजुट हो गए हैं, लेकिन केंद्र सरकार की जीएसटी बिल विषय पर यात्रा के पूर्ण हो जाने के बाद अब आखिरी वक्त में एकाएक देश के मंझोले व्यापारी का विरोध-प्रदर्शन करना अर्थपूर्ण नहीं लग रहा है। यह सिर्फ व्यवधान पैदा करने की कोशिश नजर आ रहा है।
व्यापारी संगठनों के जीएसटी बिल के विरोध में उतरने और संसद में प्रतिपक्ष कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों को देखते हुए तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) व समाजवादी पार्टी (सपा) द्वारा जीएसटी बिल पर साफ तौर से असहमति जता देने के बाद स्पष्ट हो गया है कि मामले में अभी सियासी खिचड़ी और पकेगी।
इस बीच उत्तर प्रदेश जैसे बड़े राज्य में व्यापारी संगठन और नेता जीएसटी को लेकर केंद्र की राजग सरकार के विरुद्ध अपने तेवर कड़े किए हुए हैं और संसद में पेश हो चुके जीएसटी बिल में आधा दर्जन बिंदुओं में बदलाव और नए बिंदु जोड़ने की मांग कर रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी के प्रति नरम रुख रखने के आदी कारोबारी और व्यापारी संगठनों के नेताओं ने भी इस नए जीएसटी संशोधित बिल-2015 के विरोध में उतरने की घोषणा कर चुके हैं। उत्तर प्रदेश सरकार और सूबे में सत्तारूढ़ सपा ने केंद्र सरकार के जीएसटी प्रस्ताव के बारे में अभी कोई फैसला नहीं लिया है। मुख्यमंत्री द्वारा निर्णय लिया जाना बाकी है।
मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा है, "हमें जीएसटी लागू किये जाने से होने वाले नुकसान का अभी आकलन करना है। केंद्र सरकार राज्यों के नुकसान की भरपाई किस तरह करेगी, यह पता लगने के बाद ही हम इस बारे में कोई फैसला लेंगे।"
मुख्यमंत्री ने जीएसटी को लेकर व्यापारी तथा अन्य संगठनों द्वारा किए जा रहे आंदोलन की आलोचना करते हुए कहा है कि उनको वास्तविकता का पता नहीं है और महज शक के आधार पर वे शोर-शराबा कर रहे हैं।
बिहार विधानसभा चुनाव में राजग गठजोड़ को परास्त कर दिल्ली पहुंचे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने जीएसटी बिल को पारित कराने में सहयोग का आश्वासन दिया है। नीतीश का यह सकारात्मक कदम है।
वहीं उत्तर प्रदेश में सपा की घोर प्रतिद्वंद्वी और चार बार राज्य की मुख्यमंत्री रह चुकीं मायावती पर सीधा निशाना साधते हुए मुख्यमंत्री अखिलेश ने कहा है कि जीएसटी बिल के बारे में मायावती को कोई तथ्यात्मक जानकारी नहीं है। अखिलेश का यह आकलन जीएसटी के मुद्दे पर मायावती के रुख में बनी नरमी और बिल को पास कराने में मदद की बसपा प्रमुख की खुली घोषणा करने के क्रम में है।
सपा जीएसटी के मौजूदा स्वरूप को लेकर चिंतित है, क्योंकि अगर मौजूदा स्वरूप में जीएसटी बिल पास होता है तो इसका प्रतिकूल आर्थिक और वित्तीय प्रभाव उत्तर प्रदेश पर पड़ने की आशंका है। देखा जाए तो इसकी जानकारी मायावती को भी होनी चाहिए। उन्हें सोचना चाहिए कि अगर इसका प्रभाव अच्छा पड़ता तो व्यापारी इसका विरोध क्यों करते?
मायावती को अपना रुख नरम करने से पहले इंतजार करना चाहिए था, क्योंकि संसद में इस पर अभी चर्चा होनी है और चर्चा के बाद ही कई बातें स्पष्ट हांेगी कि यह बिल यूपी के कितना हित में है। ऐसे में पहले ही इस बिल के पक्ष में नरम होना, खुला समर्थन देना गलत है। ऐसा मायावती को नहीं करना चाहिए, यह अखिलेश ने जोर देकर कहा है।
अर्थव्यवस्था को एकीकृत रूप दिए जाने और केंद्र-राज्यों के बीच कई स्तरों पर कर संबंधी कर संग्रह की जटिलताओं को खत्म करने के लिए वस्तु एवं सेवा कर अधिनियम का मूर्त रूप लेना विशेषज्ञ बेहद जरूरी मानते हैं। दुनिया के करीब डेढ़ सौ देश अपने यहां इस तरह की कर व्यवस्था लागू कर चुके हैं, हमारे देश में इस तरह की व्यवस्था एक लंबे समय से अपेक्षित रही है। यह दुर्भाग्य है कि राजनीतिक दल जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण बिल पर अज्ञानतावश राजनीति कर रहे हैं।
जीएसटी की दर कम हो, इस विषय-विरोध के झंडे को कांग्रेस थामे हुई है। यह राजनैतिक परंपराओं के हिसाब से अनुचित है। सभी को याद रहे कि अब राष्ट्रपति और तब यूपीए-2 के वित्तमंत्री रह चुके प्रणब मुखर्जी ही कर संग्रह की जटिलताओं को खत्म करने के लिए जीएसटी को लेकर आए थे और विगत 6 मई, 2015 को कांग्रेस के बहिष्कार के बावजूद 122वंे संशोधन अधिनियम के बाद जीएसटी बिल को लोकसभा में दो-तिहाई से स्वीकृति मिल चुकी है।
इन सबके बीच केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली के अनुसार, यह व्यवस्था सरकारों, उद्योगों-सेवाओं और उपभोक्ताओं सभी को फायदा देने वाली सिद्ध होगी। इसमें उन राज्यों को अधिक फायदा होगा, जहां खपत अधिक होगी।
देश के बड़े राज्यों, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, राजस्थान, पश्चिम बंगाल आदि को अपनी राजस्व वृद्धि और प्रतिव्यक्ति आय बढ़ाने के अवसर मिलेंगे, जैसे-जैसे विकास दर गति पकड़ेगी, प्रत्येक राज्य के राजस्व में वृद्धि होगी।
उधर, उत्तर-प्रदेश उद्योग व्यापर मंडल के अध्यक्ष पूर्व भाजपा सांसद श्याम बिहारी मिश्र का इस विषय पर साफ कहना है कि जीएसटी बिल 'सिंगल विंडो' भी नहीं है। इसे बनाने और संसद में ले जाने तक की प्रक्रिया में पूर्व और वर्तमान की सरकार ने व्यापारियों को विश्वास में नहीं लिया है। इस वस्तु कर अदायगी के बिल को ब्यूरोक्रेट्स, उद्योगपतियों और बड़े कारोबारियों ने बनाया है, जबकि राजस्व का बड़ा भाग लघु व्यापारियों से ही प्राप्त होता है।
दुनिया के करीब डेढ़ सौ देश अपने यहां इस तरह की कर व्यवस्था लागू कर चुके हैं। सर्वप्रथम फ्रांस ने 1954 में जीएसटी व्यवस्था लागू की थी।
दरअसल, कर-प्रणाली हमारे संविधान के भाग (क) के अंतर्गत अनुच्छेद 268 से 281 के मध्य केंद्र और राज्यों के बीच करों के अधिरोपण और वितरण संबंधी प्रावधान किए गए हैं, जिनके तहत राज्यों में बिक्री कर, चुंगी, वैट समेत तमाम कर राज्य सरकार लगाती है और केंद्रीय कर जैसे उत्पाद शुल्क, सीमा शुल्क आदि केंद्र सरकार लगाती है।
वर्तमान प्रणाली में निर्माता को वस्तु के उत्पादन व बिक्री तक कई स्तरों पर कर चुकाना पड़ता है, लेकिन जीएसटी व्यवस्था में सिर्फ अंतिम स्तर पर कर अधिरोपण का प्रावधान है। इसके द्वारा जहां एक ओर करों के संग्रह को बढ़ाया जा सकेगा, वहीं करों पर छूट के कई गैर-जरूरी तौर-तरीकों को भी कम किया जा सकेगा।
जीएसटी का चर्चा शुरू हुए करीब एक दशक हो गया है। यूपीए सरकार के दौरान जब इसकी पहल हुई, तब जीएसटी पर आम सहमति बनाने के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों की एक उच्चाधिकार समिति बनी और समिति कभी आम राय पर नहीं पहुंच पाई। कांग्रेस के कार्यकाल में गुजरात और मध्य प्रदेश जैसे भाजपा शासित राज्य भी अधिकांसबार असहमति ही प्रकट करते रहे।
विपक्ष में भाजपा राज्यों को तब अंदेशा यह रहा कि जीएसटी के लागू होने पर कराधान में उनकी स्वायत्तता नहीं रहेगी और उन्हें राजस्व का नुकसान भी होगा, लेकिन अब भाजपा शासित राज्य देश के वित्तमंत्री जेटली के कथन और आश्वासन के बाद से बिल्कुल चुप हो गए हैं।
आर्थिक विकास में जटिलताओं को दूर करने की दिशा में जीएसटी का महत्व इसलिए और भी है, क्योंकि यह बिक्री के स्तर पर वसूला जाएगा और निर्माण लागत पर लगाया जाएगा। इससे राष्ट्रीय स्तर पर वस्तुओं और सेवाओं के बाजार मूल्य में समानता के साथ-साथ दोनों में कमी भी आएगी।
यह कर प्रणाली पूरी मांग-आपूर्ति श्रंखला को प्रभावित कर जहां एक ओर प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करेगी, वहीं सरकार के बजटीय और राजकोषीय घाटे में भी कमी लाएगी, जो देश में आर्थिक सुधार की दिशा में सरकारों के लिए यह बिल बड़ा कदम है, क्योंकि पिछले कई वर्षो से प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कराधान में सुधार की मांग की जा रही थी।
जीएसटी में जो व्यवस्था लाई गई है, उनमें अब आठ रिटर्न को महीने की पहली तारीख से बीस तारीख तक भरना होगा, ऐसे में उसका व्यापार और दुकान कैसे चलेगी, मध्यम और ग्रामीण व्यापारियों को जीएसटी के रूप-प्रारूप के बारे में कोई जानकारी नहीं है।
देश में व्यापारियों की संख्या करीब 10 करोड़ से अधिक है। इनमें चार करोड़ व्यापारी गांव से हैं। ऑनलाइन की अनिवार्यता से इन पर ज्यादा असर पड़ेगा। वे न तो इंटरनेट रखते हैं और न ही उनमें बहुत से व्यापारी शैक्षिक हैं। ऐसों का कर-संग्रहण के भ्रष्ट तंत्र का शिकार होना लाजमी है।
इसके साथ ही व्यापारी संगठनों की ये भी दलील है कि व्यापारी को दिनभर बिजली उपलब्ध होती नहीं है। शाम और रात को दुकान बंद कर जब वह घर पहुंचेगा, तब रिटर्न मोमबती के उजाले में कैसे और कहां रिटर्न भरेगा। हालत यह होगी कि व्यापारी सीए के यहां दिनभर चक्कर काटता घूमेगा या फिर व्यापारी 'मुनीम' बन जाएगा। (आईएएनएस/आईपीएन)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं। ये उनके निजी विचार हैं)
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
दिल व दिमाग को कोलेस्ट्रॉल से बचाएं
लखनऊ, 11 दिसम्बर (आईएएनएस/आईपीएन)। रक्त में खराब कोलेस्ट्रॉल के स्तर में वृद्धि से हृदय की धमनियों में रुकावट पैदा होती है और इससे मस्तिष्क को भी हानि होती है। इसलिए वसायुक्त चीजें खाने से बचें, ताकि आपके दिल व दिमाग तंदुरुस्त रहें।
हमारे आहार में हानिकारक वसा, जिसे सैचुरेटेड फैट और ट्रांस फैट कहा जाता है। इसका अधिक होना रक्त में खराब कोलेस्ट्राल को बढ़ाता है, जिससे मस्तिष्क में बीटा एमिलॉइड प्लेक्स बनने लगते हैं, जो मस्तिष्क की कोशिकाओं को क्षति पहुंचाते हैं तथा मस्तिष्क की महीन धमनियों में अवरोध उत्पन्न करते हैं। इसका प्रभाव मस्तिष्क की कार्यक्षमता और स्मरणशक्ति पर पड़ता है।
लखनऊ के चिकित्सक डॉ. अमृत राज ने बताया कि सैचुरेटेड फैट युक्त पदार्थ घी, मक्खन, चीज, पनीर, मांस आदि तथा ट्रांसफैट युक्त पदार्थ जैसी तली हुई चीजें, नमकीन, चिप्स, बिस्कुट आदि का सेवन करना मानसिक स्वास्थ्य के लिए ठीक नहीं होता। इसके स्थान पर अनसैचुरेटेड फैट युक्त पदार्थ जैसे जैतून, सूरजमुखी, मूंगफली, सोयाबीन तथा अलसी के तेल का उपयोग करना लाभकारी होता है।
उन्होंने कहा कि सूखे मेवों में भी इस प्रकार का वसा होता है जो मस्तिष्क के लिए हितकारी होता है। फल, हरी साग सब्जियां, संपूर्ण अनाज, जैतून व अलसी का तेल आदि मस्तिष्क की महीन रक्त वाहिनियों को ठीक रखते हैं। इनके नियमित सेवन से अल्जाइमर (स्मरणशक्ति का ह्रास) होने का खतरा कम हो जाता है।
अलसी में ओमेगा तीन फैटी एसिड होता है जो एक उत्तम एंटी ऑक्सिडेंट होने के साथ-साथ रक्त में बीटा-एमिलॉइड प्रोटीन के स्तर को भी कम करता है। इसके ये दोनों गुण मानसिक स्वास्थ्य देने वाले होते हैं।
डॉ. राज ने कहा कि उम्र बढ़ने के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल और शर्करा के रक्त स्तर तथा रक्तचाप नियंत्रित रखना जरूरी होता है, क्योंकि उच्च रक्तचाप, मधुमेह तथा मोटापा जैसी बीमारियों से भी स्मरणशक्ति कमजोर होती है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
मौत से सहमी वनांचल की महिलाएं मध्यप्रदेश में करा रहीं नसबंदी
रायपुर/कवर्धा, 10 दिसंबर (आईएएनएस)। छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में पिछले वर्ष नसबंदी शिविर में नकली दवा के कारण 15 महिलाओं की मौत से सहमी वनांचल में रहने वाली महिलाएं सीमा से लगे मध्यप्रदेश के सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र में जाकर नसबंदी करा रही हैं।
पिछले एक हफ्ते में पंडरिया विकासखंड के वनांचल के पोलमी, कुसियारी, दमगढ़, महिडबरा, तायकेरनी, उपरा, भोभरा, सेंदुरखार, बदना सहित आसपास के अन्य गांव से लगभग 700 महिलाओं ने मध्यप्रदेश के डिंडौरी जिले में जाकर नसबंदी कराई है।
कवर्धा के सीएमएचओ डॉ.जी.के. सक्सेना ने बताया कि मध्यप्रदेश से गाड़ियां आती हैं और वनांचल की महिलाओं व पुरुषों को लेकर जाती हैं। मप्र का डिंडौरी जिला छग के वनांचल से लगा हुआ है, इसलिए भी वहां महिलाएं जाती हैं।
जानकारी मिली है कि मप्र के डिंडौरी जिले के समनापुर, गोपालपुरा और झमकी स्वास्थ्य केंद्र में जाकर ये महिलाएं नसबंदी करा रही हैं। इसमें गोंड़, यादव और बैगा महिलाएं शामिल हैं। यह पहला मौका नहीं है, जब छत्तीसगढ़ के वनांचल की महिलाएं मध्यप्रदेश में जाकर नसबंदी करा रही हैं। इसके पहले भी इस प्रकार के मामले सामने आते रहे हैं। बावजूद इसके प्रशासन इसे रोक पाने में नाकाम है।
छत्तीसगढ़ के स्वास्थ्य संचालक आर. प्रसन्ना हालांकि इससे अनभिज्ञ हैं। उन्होंने कहा, "इस प्रकार की जानकारी आप ही से मिली है। मैं पता लगाऊंगा।"
मप्र के डिंडौरी जिले के स्वास्थ्य कार्यकर्ता और आंगनबाड़ी कार्यकर्ता गाड़ियां लेकर क्षेत्र में आते हैं और गाड़ियों में भरकर हितग्राहियों को लेकर डिंडौरी जिले के अलग-अलग स्वास्थ्य केंद्र में लेकर जाते हैं। यहां उनकी नसबंदी की जाती है और प्रोत्साहन राशि देने के बाद वापस गांव छोड़ दिया जाता है। वनांचल में इन दिनों ये नजारा खूब देखने को मिल रहा है।
नांचल ग्राम महिडबरा की देवती पति दारा सिंह ने बताया कि वह पिछले दिनों नसबंदी कराने समनापुर गई थी। देवती कहती है कि यहां नसबंदी कराने में कोई परेशानी तो नहीं है, लेकिन डर लगता है। बिलासपुर में नसबंदी के दौरान महिलाओं की मौत हो गई थी, इसलिए हम डिंडौरी चले गए थे।
वहीं सकर्तिन पति बाबूराम, फूलमती पिता कमल सिंह, राजबाई पति खुखूराम ने कहा, "वहां से लोग आते हैं और गाड़ी में हमको लेकर जाते हैं।"
चिकित्सा विभाग की मानें तो वनांचल में महिलाओं और पुरुषों को दूसरे राज्य जाकर नसबंदी कराने से रोकने का प्रयास किया जाता है। वनांचल में जागरूकता लाने का प्रयास जारी है, लेकिन वनांचल से डिंडौरी जिला पास होने के कारण वहां बड़ी संख्या में लोग नसबंदी के लिए जाती हैं।
डिंडौरी के सीएमएचओ डॉ. संतोष जैन ने कहा, "हितग्राही चाहे कहीं के भी हों, अगर वे आते हैं तो उनकी नसबंदी की जाती है। छत्तीसगढ़ से पहले भी महिलाएं आती रही हैं और अब भी आती हैं, क्योंकि वहां बेहतर चिकित्सा सुविधा उपलब्ध नहीं है।"
बहरहाल, प्रदेश के बाहर जाकर नसबंदी कराए जाने की जानकारी सामने आने के बाद छग का स्वास्थ्य विभाग मामले की लीपापोती में जुट गया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
सौंदर्य व प्रतिभा को मिलेगा सही मंच
मिस एक्सक्यूजिट प्रतियोगिता के क्रिएटर और नेशनल डायरेक्टर विकास शर्मा ने आईएएनस से कहा, "हमारा मानना है कि हरेक के पास प्रतिभा होती है और उसे अपने तरीके और गति के साथ शोहरत हासिल करनी चाहिए। इस पहल का मकसद न सिर्फ टियर 1 शहरों बल्कि टियर 2 और टियर 3 शहरों की लड़कियों के लिए प्लेटफार्म प्रदान करना है। मीडिया एवं क्रिएटिव आर्ट्स के क्षेत्र में सही इकोसिस्टम बनाना इस सीरीज का मकसद होगा।"
शर्मा ने कहा, "हमने इस प्रतियोगिता के लिए न्यूनतम लंबाई 5 फुट 2 इंच रखी है, क्योंकि हम अगर ऐसी प्रतियोगिताओं के इतिहास को देखें तो इनमें जीतने वाली ज्यादातर लड़कियां फिल्म उद्योग या टेलीविजन के क्षेत्र में गई हैं। जहां रैंप के लिए न्यूनतम लंबाई की शर्त जरूरी है वही फिल्म, प्रिंट और टेलीविजन इंडस्ट्री में जाने के लिए ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है। थोड़े समय में इतनी ज्यादा लोकप्रियता हासिल करने के पीछे यही मुख्य वजह है, क्योंकि पहले किसी ने इसकी जरूरत को महसूस नहीं किया।"
शर्मा ने कहा कि इस प्रतियोगिता के तहत देश भर में सुंदरता और प्रतिभा की पहचान की जाएगी। इसकी शुरुआत फेसबुक के जरिए ऑनलाइन कांटेस्ट के रूप में हो चुकी है। अब तक इसकी वेबसाइट पर 36 शहरों से 400 से ज्यादा आवेदन आ चुके हैं। इस संबंध में दिल्ली, नोएडा और कोलकाता में तीन लाइव ऑडिशंस भी हो चुके हैं।
उन्होंने कहा कि वुमेंस एरा से जुड़ने से इस प्रतियोगिता को और मजबूती मिली है। वुमेंस एरा महिलाओं की सबसे लोकप्रिय पत्रिका है, जिसके 24 लाख पाठक हैं। पूरे भारत में सबसे प्रतिभावान लड़कियों की पहचान करने वाले इस प्लेटफार्म में वुमेंस एरा एक हिस्सेदार होगी।
दिल्ली प्रेस के प्रबंध निदेशक दिवेश नाथ ने कहा, "नियम के तहत हम सौंदर्य प्रतियोगिता को बढ़ावा देने से परहेज करते हैं, क्योंकि इससे गैर जरूरी विभाजन पैदा होता है। लेकिन जब हमने इस पहल के पीछे के मकसद को समझा तो मुझे मिस एक्सक्यूजिट प्रतियोगिता की मदद करने की प्रेरणा मिली। ऐसा इसलिए क्योंकि यह कोशिश न सिर्फ एक दूसरी सौंदर्य प्रतियोगिता शुरू करने के लिए है बल्कि उन सभी सुंदर लड़कियों तक पहुंच बनाने के लिए है, जो खुद उद्योग द्वारा बनाई गई धारणा की वजह से पीछे छूट गई है।"
शर्मा ने कहा, "लंबे समय से लड़कियों के लिए बनी दीवारें तोड़ना बेहद मुश्किल है, लेकिन हमें भरोसा है कि कई ब्रांड्स और समुदाय आगे आएंगे और इस मिशन में हमारे साथ शामिल होंगे।"
प्रतियोगिता का फाइनल फरवरी 2016 में दिल्ली एनसीआर में आयोजित किया जाएगा। इसमें देशभर से चुने गए प्रतियोगी पहले मिस एक्सक्यूजिट पैजेंट का ताज हासिल करने के लिए कई सीरीज में हिस्सा लेंगे। फाइनल से एक दिन पहले ग्रूमिंग सेशन का आयोजन होगा, जिसमें मेकअप, मॉडलिग, एक्टिंग और कई दूसरी विधाओं के विशेषज्ञ प्रतियोगियों को उनके सपने को सच बनाने में मदद करेंगे।
इंडो-एशियन न्यूज सíवस।
सियासत का अखाड़ा बनती अयोध्या
6 दिसंबर 1992 की 23वीं वर्षगांठ बिना किसी अप्रिय घटना के पूरी तरह से शांति से गुजर गई। सशस्त्र बलों की निगरानी में रही अयोध्या में दिनभर सब ठीक रहने और शांति से गुजर जाने पर पुलिस और प्रसाशन को चैन की सांस मिली वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने भी राहत होना अनुभव किया। हालांकि इस अवसर पर दोनों पक्षों के धार्मिक नेताओं और भाषणवीरों ने अपने-अपने मत-धर्म के अनुसार राममंदिर और बाबरी मस्जिद निर्माण की प्रतिबद्धताएं भी जताईं।
भाजपा के रवैये से खासे नाराज संघ और भाजपा के कुछ नेताओं ने तल्ख होते हुए कहा है भाजपा ने हिंदुओं के साथ छल किया है। राम मंदिर की तरह हिंदुत्व और राष्ट्रवाद पर भी यही धोखा जारी है। अब वह मानते हंै कि कांग्रेस पर मुस्लिम तुष्टिकरण की राजनीति का आरोप लगाती भाजपा खुद बेहद 'छद्म राष्ट्रवादी' तरीके से हिंदू तुष्टिकरण की राजनीति के बल पर आगे बढ़ी है।
अयोध्या में बाबरी मस्जिद के अस्तित्व सिद्ध करने की अदालत में कानूनी लड़ाई लड़ रहे बुजुर्ग वादी हासिम अंसारी जो संवाद-बातचीत के सदैव से पक्षधर थे, अबकी पलटी मरते हुए कहते हैं कि उन्हें अल्लाह पर भरोसा है कि उनके जीवन काल में अयोध्या में बाबरी मस्जिद स्थापित होगी।
उधर इसी तल्ख अंदाज में संत और उन्नाव के चर्चित भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने साफ कर कहा है कि अयोध्या में श्रीराम का मंदिर था, वह आज भी मंदिर है और भविष्य में मंदिर भव्य बनेगा और अयोध्या में कोई बाबरी मस्जिद नहीं थी। तीखे बयान के सहारे माहौल को गर्माने में माहिर उत्तर प्रदेश सरकार के मंत्री आजम खां ने भाजपा को शह देते हुए कहा है कि भाजपा को सत्ता में टिके रहने के लिए संघ और विहिप को राम मंदिर निर्माण की बात दुहराते रहनी होगी।
विहिप के भरकस प्रयासों के बाद अयोध्या-कारसेवकपुरम में हुयी हल्की जुटान में घोषित शौर्य दिवस के अवसर पर आयोजित हिंदू स्वाभिमान सम्मेलन में संत-धर्माचार्य ने 6 दिसंबर के दिन को हिन्दू समाज को गौरवान्वित करने वाला करार देते हुए राममंदिर का भव्य निर्माण के लिए संतों और धर्माचार्यो के जल्द प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने की बात कही। संतों ने कहा कि श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण हो कर रहेगा।
संतों ने कहा कि 6 दिसंबर,1992 को श्रीराम जन्मभूमि पर खड़े कलंक को समाप्त कर हिंदू समाज ने भगवान राम लला के भव्य मंदिर निर्माण की आधारशिला रख कर विजय उत्सव मनाया था। विहिप के कार्यक्रम में अयोध्या फैजाबाद के स्थानीय भाजपा सांसद लल्लू सिंह संतों के साथ उपस्थित रहे।
कारसेवकपुरम में आयोजित हिंदू स्वाभिमान सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए श्रीराम जन्मभूमि न्यास अध्यक्ष महंत नृत्यगोपालदास ने कहा मंदिर तो वहां स्थापित हो गया है अब भव्यता देनी बाकी है जो शीघ्र प्रारंभ होगा, इसकी हिंदू समाज समय की प्रतीक्षा कर रहा है। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के थिर होते ही श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण की समस्या को दूर करने के लिए संतों का प्रतिनिधिमंडल मिलेगा।
कार्यक्रम के मुख्य वक्ता विहिप केंद्रीय मंत्री राजेंद्र सिंह पंकज ने कहा कि विहिप संरक्षक अशोक सिंहल ने अपने जीवन में सांस्कृतिक राष्ट्रवाद को अपने जीवन में समाहित किया, उसी में अयोध्या में श्रीराम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर का निर्माण भी सम्मिलित है, विहिप के शरद शर्मा ने बताया कार्यक्रम में प्रमुख वक्ताओं ने स्मरण दिलाते हुए कहा है कि अयोध्या में मंदिर निर्माण के लिए हिंदू समाज सदैव ही संघर्ष करता रहा है। आगे उज्जैन सिंहस्थ कुंभ में संत एकत्र हो रहे हैं, तब मंदिर पर निर्णय होगा।
विहिप के अयोध्या कार्यक्रम में विभिन्न संत मंतों और महामंडलेश्वरों में भगवान दास, प्रेम शंकर दास, सुरेश दास, पूर्व सांसद डा.राम विलास दास वेदान्ती, कन्हैया दास, सुशील दास, राम शरण दास, चिन्मय दास, राजू दास, रामकृष्ण दास, अवध बिहारी दास, लड्डू दास, पवन दास शास्त्री, बृज मोहन दास, जग मोहन दास, महंत श्याम सुन्दर दास प्रमुखता से उपस्थित रहे।
इस अवसर पर विहिप के वक्ता राजेंद्र सिंह ने कहा कि हम सोमनाथ की तर्ज पर केंद्र सरकार से मांग करते हैं कि राम जन्मभूमि पर भव्य मंदिर निर्माण का मार्ग प्रशस्त करे।
केंद्र में 'सेक्युलर' का मेडल पाने की लालसा में जुटी भाजपा ने विहिप के आयोजन से दूरी बनाए रखी। उत्तर प्रदेश से आधा दर्जन केंद्रीय मंत्री अयोध्या और रामजी से दूरी बनाये रहे। इतना ही नहीं, वर्ष 2017 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव के राजनैतिक नजरिये से दलित वोट पाने के लालसा क्रम में राजनीति वास्ते डॉ. भीमराव अंबेडकर को उनके 60वें परिनिर्वाण दिवस पर अभियान के तहत राज्य-व्यापी कार्यक्रम आयोजित कर संविधान को याद करके श्रद्धा-सुमन अर्पित किए गए।
राजनैतिक स्ट्रोक लगाने की मंशा से बसपा प्रमुख मायावती ने भी 6 दिसंबर के दिन अयोध्या में बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को एकाएक से स्वीकारने के बाद सपा और कांग्रेस के लिए आने वाले समय के लिए खासी कठिनाई बढ़ा दी है।
राजनैतिक धमाका और 17 प्रतिशत मुस्लिम वोटों की गोलबंदी के लिए बसपा प्रमुख मायावती ने देश और उत्तर प्रदेश के दलित और मुस्लिम मतदाताओं की एकजुटता के लिए बयान देते हुए इतना तक कह डाला कि बसपा अयोध्या में बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को ही मानती है और 6 दिसंबर 1992 को सम्प्रदायिक ताकतों द्वारा ढहाया गया विवादित स्थल उसकी नजर में बाबरी मस्जिद है।
मायावती का बाबरी मस्जिद के अस्तित्व को राजनैतिक नजरिये से मान्यता देना संघ प्रमुख मोहन भागवत के दो दिन पहले के कथन से जोड़ कर देखा जा रहा है जिसमें भागवत ने कहा था कि उनके जीवन काल में सोमनाथ मंदिर के अनुरूप अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण होगा।
इस अवसर पर अपने कैडर से संवाद में बसपा प्रमुख मायावती ने देश और उत्तर प्रदेश के लोगों को डॉ. अंबेडकर के बताए हुए रास्ते पर चलकर सत्ता की मास्टर चाबी प्राप्त करने के लिए तन, मन, धन से बीएसपी मूवमेंट को सहयोग जारी रखने का संकल्प लेने हेतु आभार प्रकट कर कहा कि डॉ. अंबेडकर व उनके अनुयाइयों के प्रति केंद्र की वर्तमान एनडीए सरकार का रवैया भी, कांग्रेस पार्टी की पिछली सरकारों की तरह ही, दिखावटी व छलावा करार देते हुए कहा कि भाजपा सरकार द्वारा भी इनके लिए कोई ठोस काम नहीं किया गया है, बल्कि केवल कोरी बयानबाजी ही की जाती रही है।
जनता में भी दशकों पुराने इस विषय पर भाजपा के विरुद्ध नाराजगी खुले से दिख रही है, इलाहाबाद के वकील श्रीनिवाश शकर ने तल्ख हो कहा है कि जिस तरह से मुस्लिम तुष्टिकरण ने मुसलमानों की हैसियत कमजोर की तथा वह पिछड़ते गए, अब वही हाल 92 से जय श्रीराम बोलते भाजपा भक्त हिंदुओं का हो रहा है, जिसमंे अधिकांश लोग आज हर तरह से हाशिये पर जा चुके हैं।
उन्होंने कहा कि भाजपा ही नहीं राजनीति में रहे बड़े हिंदू ब्रांड आज सिर्फ झुनझुने बन चुके हैं। कल को गोभक्त और हर हर मोदी करते युवाओं के साथ भी यही धोखा होना तय है, इसलिए हिंदूवाद की राजनीति से हिंदुओं को बदनामी के आलावा कोई फायदा होने वाला नहीं है। (आईएएनएस/आईपीएन)
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
सर्दियों में बच्चे को निमोनिया से बचाएं
नई दिल्ली, 9 दिसम्बर (आईएएनएस)। जिस देश में 4.3 करोड़ लोग निमोनिया से पीड़ित हैं, वहां पर इसकी रोकथाम और जांच के बारे में खास कर सर्दियों में जागरूकता फैलाना बेहद आवश्यक है। इसका एक कारण यह भी है कि आम फ्लू, छाती के संक्रमण और लागातार खांसी के लक्षण इससे मेल खाते हैं।
निमोनिया असल में बैक्टीरिया, वायरस, फंगस या परजीवी से फेफड़ों में होने वाला एक किस्म का संक्रमण होता है, जो फेफड़ों में एक तरल पदार्थ जमा करके खून और ऑक्सीजन के बहाव में रुकावट पैदा करता है। बलगम वाली खांसी, सीने में दर्द, तेज बुखार और सांसों में तेजी निमोनिया के लक्षण हैं।
अगर आपको या आपके बच्चे को फ्लू या अत्यधिक जुकाम जैसे लक्षण हैं, जो ठीक नहीं हो रहे तो तुरंत डॉक्टर के पास जाकर सीने का एक्सरे करवाएं, ताकि निमोनिया होने या न होने का पता लगाया जा सके।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लयूएचओ) की हालिया रिपोर्ट के मुताबिक, स्ट्रेप्टोकोकस निमोनिया पांच साल से छोटी उम्र के बच्चों के अस्पताल में भर्ती होने व मृत्यु होने का प्रमुख कारण है।
इस बारे में इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के महासचिव डॉ के.के. अग्रवाल ने कहा, "छोटे बच्चे, नवजातों और समय पूर्व प्रसव से होने वाले बच्चे, जिनकी उम्र 24 से 59 महीने है और फेफड़े पूरी तरह विकसित नहीं हैं, हवा नली तंग है, कमजोर पौष्टिकता और रोगप्रतिरोधक प्रणाली वाले बच्चों को निमोनिया होने का ज्यादा खतरा होता है।"
उन्होंने कहा कि अस्वस्थ व अस्वच्छ वातावरण, कुपोषण और स्तनपान की कमी की वजह से निमोनिया से पीड़ित बच्चों की मौत हो सकती है, इस बारे में लोगों को जागरूक करना बेहद आवश्यक है। कई बच्चों की जान बचाई जा सकती है और यह डॉक्टरों का फर्ज है कि वे नई मांओं को अपने बच्चों को स्वस्थ रखने तथा सही समय पर वैक्सीन लगवाने के लिए बताएं।
निमोनिया कई तरीकों से फैल सकता है। वायरस और बैक्टीरीया अक्सर बच्चों के नाक या गले में पाए जाते हैं और अगर वह सांस से अंदर चले जाएं तो फेफड़ों में जा सकते हैं। वह खांसी या छींक की बूंदों से हवा नली के जरिये भी फैल सकते हैं। इसके साथ ही जन्म के समय या उसके तुरंत बाद रक्त के जरिये भी यह फैल सकता है।
वैक्सीन, उचित पौष्टिक आहार और पर्यावरण की स्वच्छता के जरिये निमोनिया रोका जा सकता है। निमोनिया के बैक्टीरिया का इलाज एंटीबायटिक से हो सकता है, लेकिन केवल एक तिहाई बच्चों को ही एंटीबायटिक्स मिल पा रहे हैं। इसलिए जरूरी है कि सर्दियों में बच्चों को गर्म रखा जाए, धूप लगवाई जाए और खुले हवादार कमरों में रखा जाए। यह भी जरूरी है कि उन्हें उचित पौष्टिक आहार और आवश्यक वैक्सीन मिले।
नियूमोकोकल कोंजूगेट वैक्सीन और हायमोफील्स एनफलुएंजा टाईप बी दो प्रमुख वैक्सीन हैं, जो निमोनिया से बचाती हैं। लेकिन 70 प्रतिशत बच्चों को महंगी कीमत और जानकारी के अभाव की वजह से यह वैक्सीन लगवाई नहीं जाती। इसलिए सरकार को चाहिए कि वह राष्ट्रीय स्तर पर इस वैक्सीन को बच्चों तक पहुंचाने के लिए योजना बना कर लागू करे, ताकि इस बीमारी को कम किया जा सके।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
कार्बन उत्सर्जन और इंसानी वजूद
दक्षिण भारत में सुनामी के बाद चेन्नई में आई जलप्रलय हमें सोचने को बेबस कर दिया है, लेकिन हम पर भोगवाद की संस्कृति हावी है। हम प्रकृति के बदलते स्वरूप को नहीं समझ पा रहे हैं। हम हादसों से सबक नहीं लेते हैं। दुनियाभर में बढ़ता जलवायु परिवर्तन हमारे सामने महाभारी के रूप में उभर रहा है।
कार्बन उत्सर्जन हमारे लिए चुनौती बनी है, लेकिन हम इस पर कुछ अधिक पहल नहीं कर पा रहे हैं। हमारी विकासवादी सोच हमें विनाश की ओर ढकेल रही है। ग्लोबल वार्मिग के कारण धरती गर्म हो रही है। प्रकृति की संस्कृति बदल रही है। इसका कारण मानव है।
हमें अपने विज्ञान पर पूरा भरोसा है कि हम उस पर जीत हासिल कर लेंगे। लेकिन इंसान शायद यह भूल रहा है कि जहां से उसका शोध खत्म होता है। प्रकृति वहां से अपनी शुरुआत करती है। दुनियाभर में ग्लोबल वार्मिग का सच हमारे सामने आने लगा है।
इंसान की भौतिक और विकासवादी सोच उसे मुसीबत की ओर धकेल रही है। विकास की धृतराष्ट्री नीति हमें प्रकृति और इंसान के मध्य होने वाले अघोषित महाभारत की ओर ले जा रही है। प्रकृति के खिलाफ इंसान और उसका विज्ञान जिस तरह युद्ध छेड़ रखा है। उसका परिणाम भयंकर होगा। भौमिक विकास की रणनीति इंसान का वजूद खत्म कर देगी।
हम अंधी विकास की दौड़ में प्रकृति से संतुलन बनाए रखने में नाकामयाब रहे हैं। प्रकृति और पर्यावरण संरक्षण के लिए बनाए गए कानून सिर्फ बस सिर्फ किताबी साबित हो रहे हैं। ओजन परत में होल के कारण धरती का तामपान बढ़ रहा है। कार्बन उत्सर्जन पर हम विराम नहीं लगा पा रहे हैं। इसका नतीजा है कि साल दर साल तपन बढ़ रहा है। कार्बन उत्सर्जन पर विराम नहीं लग पा रहा है। भारत में तेजी से जलवायु परिवर्तन हो रहा है। कभी सूख कभी बाढ़ जैसी आपदाएं हमारे सामाने हैं।
हमारे लिए यह सबसे चिंता का विषय है। अगर हम ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन की बात करें तो दुनियाभर में सिर्फ 10 देश, जिसमें चीन, अमेरिका, यूरोपिय देश, भारत, रूस, इंडोनेशिया, ब्राजील, कनाडा, जापान जैसे देश 70 फीसदी ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करते हैं।
57 फीसदी कार्बन क्षइऑक्साइड कोयले से उत्सर्जित होती है, जबकि जैव ईंधन से यह 17 फीसदी होती है। इसके अलावा 14 फीसदी मीथेन, 8 फीसदी नाइटेट ऑक्साइड और बाकी मंे अन्य गैसें शामिल हैं। इनसे पूरी तरह हमारे ग्रीन हाउस पर प्रभाव पड़ता है। 100 सालों में धरती के तापमान में 0.8 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इसमें भी 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि 30 सालों में हुई है।
कार्बन उत्सर्जन मामले में भारत तीसरे स्थान पर है। अकेले चीन दुनिया में 11 बिलियन टन कार्बन उत्सर्जित करता है। चीन भारत से चौगुना और अमेरिका से दोगुना कार्बन का उत्सर्जन करता है। कार्बन का प्रभााव रोकने के लिए वनों की अधिकता जरूरी है। भारत इस मामले में पीछे है, क्योंकि यहां 24 फीसदी ही जंगल हैं, जबकि रूस के पास 45 और जापान के पास 67 फीसदी जंगल हैं। इसका सीधा असर हम देख रहे हैं।
यह परिवर्तन हमारी कृषि आधारित अर्थ व्यवस्था को प्रभावित कर रहा है। दुनिया के सबसे प्रदूषित दस शहरों में दिल्ली और पटना पहले और दूसरे नंबर पर हैं, जबकि देश के 13 शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों में शुमार हैं।
ग्लोबल वार्मिग के पीछे अस्सी फीसदी जलवायु परिवर्तन ही मुख्य कारण हैं। लेकिन यह समस्या थमने वाली नहीं है। इंसान अगर प्रकृति से तालमेल नहीं बना सका तो उसका अस्तित्व खत्म हो जाएगा। प्रकृति की चेतावनी को हमें समझने की जरूरत है। ग्लोबल वार्मिग के कारण ग्लेशियर पिघल रहे हैं। समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो रही है, जबकि जमीन के अंदर का पेयजल घट रहा है।
धरती पर बढ़ता प्रकृति का गुस्सा हमारे लिए खतरा बन गया है। भूकंप, बाढ़, सूखा, भू-स्खलन के बाद अब लू अस्तित्व मिटाने को तैयार है। अभी हम उतराखंड की त्रासदी से पूरी तरह नहीं निपट पाए हैं। प्राकृतिक जलजले के बाद वहां का ढांचागत विकास आज भी अधूरा है। पुल, सड़क और दूसरी इमारतें हमें उस त्रासदी की याद दिलाती हैं।
उत्तराखंड की धार्मिक यात्रा करने में भी आज भी लोग करता रहे हैं। प्राकृतिक विनाशलीला का सबसे बड़ा उदाहरण हमारे सामने पुणे का मलिन गांव हैं, जहां पिछले साल पहाड़ खिसकने से पूरा गांव जमींदोज हो गया था। गांव का का पता ही नहीं चला।
नेपाल में आए भूकंप की तबाही हम देख चुके हैं। प्रकृति हमें अपने तांडव से बार-बार चेतावनी दे रही है। लेकिन हम हैं कि उसकी ओर ध्यान ही नहीं दे रहे हैं, जिससे स्थिति बुरी हो चली है।
औद्योगिक संस्थानों, सड़कों, पुलों और शहरीकरण के चलते वनों का सफाया हो रहा है। वन भूमि का विस्तार घट रहा है। राष्ट्रीय राजमार्ग निर्माण के लिए आम और दूसरे पुराने वृक्षों को धराशायी किया जा रहा है। इसका असर है कि धरती का तापमान बढ़ रहा है। इस पर हमें गंभीर चिंतन और चिंता करने की जरूरत है, वरना इंसान का वजूद अपने आप मिट जाएगा। इसकी नींव इंसान ने डाल दी है। साल दर साल धरती पर प्रकृति का नग्न तांडव बढ़ता जाएगा। इंसान अपनी गलतियों के कारण प्रकृति से यह अघोषित युद्ध लड़ना पड़ेगा। इस जंग में आखिरकार इंसान हार रहा और हारेगा, जबकि प्रकृति विजयी होगी।
यह सब किया धरा इंसान का है। वह अपने को सबसे बुद्धिशाली और कौशलयुक्त समझता है। वह अपनी विकासवादी सोच के बल पर प्रकृति और उसकी कृति पर विजय पाना चाहता है। संभवत: यही उसकी सबसे बड़ी भूल है। प्रकृति पर हम विजय प्राप्त नहीं कर सकते हैं।
हमें विज्ञान और विकास के साथ प्रकृति से सामंजस्य स्थापित करना होगा। अगर हम ऐसा नहीं कर पाते हैं तो आने वाला वक्त इंसानों के लिए बेहद बुरा होगा और हम बाढ़, सूखा, सूनामी, हिम, भू-स्खलन जैसे प्राकृतिक आपदाओं से लड़ते रहेंगे। जलवायु परिवर्तन हमें ले डूबेगा।
(आईएएनएस/आईपीएन)
(लेखक स्वतंत्र पत्रकार हैं)
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
केरल : सहिष्णुता और प्रगति का मूर्तरूप
केरल की संस्कृति राज्य की सहिष्णु भावना का जीता-जागता उदाहरण है। यहां की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत आर्य और द्रविड़ संस्कृतियों के मेल से बनी है जो भारत के अन्य हिस्सों और विदेशी प्रभावों के तहत सहस्राब्दियों में विकसित हुई है। केरल (केरलम) नाम केरा (नारियल का वृक्ष) और अलम (स्थान) से बना है।
यहां सदियों से विभिन्न समुदायों और धार्मिक समूहों के लोग पूरी समरसता से रहते हैं। यहां पारंपरिक और आधुनिकता के बीच ताल-मेल के जरिए लोग एक-दूसरे के साथ सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत करते हैं, जो अनेकता में एकता का जीवंत उदाहरण है।
केरल में आधी से अधिक आबादी हिंदू धर्मावलंबी है। इसके बाद इस्लाम और ईसाई धर्म को मानने वाले लोग हैं। भारत के अन्य राज्यों की तुलना में केरल में सांप्रदायिकता और वर्गवाद कम है। यहां खान-पान की आदतों को लेकर कोई सांप्रदायिक दुराव नहीं है। सभी धर्मों के लोग समान आहार वाले हैं। राज्य में मुख्य भोजन चावल है, जिसके साथ शाकाहार और मांसाहार व्यंजन शामिल हैं।
अन्य राज्यों की तरह केरल में शहरी और ग्रामीण विभाजन नजर नहीं आता। केरल के लोग न सिर्फ एक दूसरे से एकरस हैं, बल्कि प्रकृति के प्रति जागरूक भी हैं। वे 'प्रदूषण से नुकसान, प्रकृति का संरक्षण' सिद्धांत का पालन करते हुए पर्यावरण को सुरक्षित बनाने और उसके रखरखाव का प्रयास करते हैं। यहां के लोग शिक्षित और सभ्य हैं तथा राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और आर्थिक रूप से सावधान एवं जागरूक हैं।
आमतौर पर यहां के लोगों को पढ़ने का बहुत शौक होता है और वे मीडिया, खासतौर से अखबारों को पढ़ने में बहुत रुचि रखते हैं।
केरल में सत्ता विकेंद्रीकृत है। यहां का बुनियादी ढांचा मजबूत है और जमीनी स्तर पर काम होता है। बजट का 40 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार द्वारा ग्राम पंचायतों को दिया जाता है, ताकि वे विकास कार्य के लिए स्वयं निर्णय कर सकें।
विकास गतिविधियों के सीधे वित्तपोषण में सांसदों और विधायकों की कोई भूमिका नहीं होती तथा सारे निर्णय स्थानीय स्तर पर ग्राम पंचायतों द्वारा किये जाते है। भारत के अन्य राज्यों में केरल के विकेन्द्रीकरण का बहुत सम्मान किया जाता है। स्थानीय निकाय क्षेत्र के विकास में अहम भूमिका निभाते है और पारदर्शी तरीके से जनता की भागीदारी सुनिश्चित की जाती है। इससे न केवल जनप्रतिनिधि जिम्मेदार और उत्तरदायी होते हैं, बल्कि वे जनता के कार्यो के प्रति सावधानी से कार्यवाही करते हैं।
केरल स्थानीय प्रशासन संस्थान (केआईएलए), त्रिशूर के नेतृत्व में क्षमता निर्माण गतिविधियां शुरू की गई हैं। यह इस संबंध में नोडल संस्थान है। केरल में त्रिस्तरीय पंचायती व्यवस्था काम करती है। जहां 14 जिलों में 1209 स्थानीय निकाय संस्थान मौजूद हैं, जिनके तहत ग्रामीण इलाकों के लिए 14 जिला पंचायतें, 152 ब्लॉक पंचायतें और 978 ग्राम पंचायतें तथा शहरी इलाकों के लिए 60 नगर परिषदें और 5 नगर-निगम चल रहे हैं।
केरल में काली मिर्च और प्राकृतिक रबड़ का उत्पादन होता है, जो राष्ट्रीय आय में अहम योगदान करते हैं। कृषि उत्पादों में नारियल, चाय, कॉफी, काजू और मसाले महत्वूपर्ण हैं। केरल में उत्पादित होने वाले मसालों में काली मिर्च, लौंग, छोटी इलायची, जायफल, जावित्री, दालचीनी, वनीला शामिल हैं।
केरल का समुद्री किनारा 595 किलोमीटर लंबा है। यहां उष्णकटिबंधीय जलवायु है और इसे 'भारत का मसालों का बाग' कहा जाता है। कोच्चि स्थित नारियल विकास बोर्ड भारत को विश्व में अग्रणी नारियल उत्पादक देश और स्पाइसेज बोर्ड इंडिया भारत को मसालों के व्यापार में अग्रणी बनाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।
1986 में केरल सरकार ने पर्यटन को महत्वपूर्ण उद्योग घोषित किया और ऐसा करने वाला यह देश का पहला राज्य था। केरल विभिन्न ई-गवर्नेस पहलों को लागू करने वाला भी पहला राज्य है। 1991 में केरल को देश में पहले पूर्ण साक्षर राज्य की मान्यता प्राप्त हुई है, हालांकि उस समय प्रभावी साक्षरता दर केवल 90 प्रतिशत थी। 2011 की जनगणना के अनुसार 74.04 प्रतिशत की राष्ट्रीय साक्षरता दर की तुलना में केरल में 93.91 प्रतिशत साक्षरता दर है।
केरल ने सूचना प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। यहां सभी 14 जिलों में 100 प्रतिशत मोबाइल सघनता, 75 प्रतिशत ई-साक्षरता, अधिकतम डिजिटल बैंकिंग, ब्रॉडबैंड कनेक्शन और ई-जिला परियोजना हैं तथा बैंक खाते आधार कार्ड से जुड़े हुए हैं, जिस वजह से डिजिटल केरल के लिए मजबूत बुनियाद पड़ी है। इन संकेतों के आधार पर केरल को पूर्ण डिजिटल राज्य घोषित करने की घोषणा की गई है।
सभी पंचायतों में आयुर्वेदिक उपचार केंद्रों की शुरुआत के साथ ही केरल आयुर्वेद राज्य बनने के लिए भी तैयार है। इसके तहत 77 नए स्थायी केंद्र शुरू किए गए और 68 आयुर्वेद अस्पतालों का जीर्णोद्धार किया गया। 110 होम्योपैथिक डिस्पेंसरी शुरू की गई है।
'ईश्वर का अपना देश' के नाम से प्रसिद्ध केरल को बेटियों से प्रेम करने की भूमि के रूप में भी जाना जा सकता है। यहां बेटों के मुकाबले बेटियों की संख्या अधिक है और 2011 की जनगणना के अनुसार 1000 पुरुषों के मुकाबले 1084 महिलाओं के साथ ही यह देश का सबसे उच्च लिंग अनुपात है।
केरल में बालिका का जन्म पवित्र और ईश्वर का उपहार माना जाता है।
राज्य में सबसे उच्च 93.91 प्रतिशत साक्षरता दर और 74 वर्ष की औसत प्रत्याशा है। यहां से नौ विभिन्न भाषाओं में समाचार पत्र प्रकाशित होते हैं, जिनमें से अधिकतर अंग्रेजी और मलयालम भाषा के हैं।
पूर्ववर्ती मातृ प्रभुत्व प्रणाली के चलते केरल में महिलाओं की उच्च सामाजिक स्थिति है। देश के अन्य हिस्सों में जहां बालक को प्राथमिकता दी जाती है, वहीं केरल में बालिका के जन्म को बोझ नहीं समझा जाता। केरल में लगभग सभी जाति, धर्म, संप्रदाय या क्षेत्र में लड़कियों की जन्म और जीवित रहने की दर अधिक है और बालिका शिक्षा को अधिक महत्व दिया जाता है।
केरल में 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' अभियान सबसे आगे चल रहा है। केरल में तरक्की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक सभी क्षेत्रों में नजर आता है।
संयुक्त राष्ट्र के बच्चों के लिए कोष (यूनिसेफ) और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने फामूर्ला दूध की तुलना में माताओं द्वारा दूध पिलाने को बढ़ावा देने के लिए केरल को दुनिया का पहला 'शिशु अनुकूल राज्य' का दर्जा दिया है।
यहां 95 प्रतिशत से अधिक बच्चों का जन्म अस्पताल में होता है और इस राज्य में सबसे कम नवजात शिशु मृत्युदर है। केरल को 'संस्थागत प्रसव कराने' के लिए पहला स्थान दिया गया है। यहां पर 100 प्रतिशत जन्म चिकित्सा सुविधाओं में होता है।
विकास के केरल मॉडल को देश के अन्य राज्यों द्वारा अपनाए जाने की आवश्यकता है। महिला सशक्तीकरण, उच्च साक्षरता दर और पंचायती राज संस्थानों की मजबूती के लिए देश का मॉडल राज्य है, जिससे दूसरे राज्यों को प्रेरणा लेनी चाहिए। (आईएएनएस/आईपीएन)
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
सावधानी रख सर्दियों में लाएं अच्छे दिन
सर्दियों में दिन छोटे हो जाते हैं, जिससे हार्मोन में असंतुलन पैदा होता है और शरीर में विटामिन 'डी' की कमी आती है। इससे दिल और दिमाग पर प्रभाव पड़ता है।
ठंडे मौसम में खासकर उम्रदराज लोगों को अवसाद घेर लेता है, जिससे उनमें तनाव और हाइपरटेंशन काफी बढ़ जाता है। सर्दियों के अवसाद से पीड़ित लोग अक्सर ज्यादा चीनी, ट्रांस फैट और सोडियम व ज्यादा कैलोरी वाला भोजन खाने लगते हैं। मधुमेह और हाइपरटेंशन से पीड़ित लोगों के लिए बहुत ही खतरनाक हो सकता है। इस मौसम में आम तौर पर निमोनिया भी हो जाता है।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के महासचिव डॉ. के.के.अग्रवाल बताते हैं कि सर्दियों में होने वाली निमोनिया, अवसाद, हाइपोथर्मिया व ब्लड प्रेशर में उतार-चढ़ाव सहित अन्य बीमारियां रोकी जा सकती हैं। इसके लिए जीवनशैली की कुछ आदतों में थोड़ा सा बदलाव करके इनका आसानी से इलाज किया जा सकता है।
उन्होंने कहा, "जीवनशैली से जुड़ी बीमारियों से पीड़ित लोगों को सलाह दी जाती है कि वे सर्दियों में शराब का सेवन न करें, क्योंकि यह मुश्किलें पैदा कर सकती है। सेहतमंद आहार लें और उटपटांग खाने से बचें। थोड़े-थोड़े अंतराल पर आहार लेना ज्यादा बेहतर रहता है।"
इन बातों का रखें ध्यान :
* सर्दियों के अवसाद से बचने के लिए लंबे समय तक धूप मे बैठें या चारदीवारी के अंदर बत्ती जला कर रहें।
* गर्मियों की तुलना में सर्दियों में तड़के ब्लड प्रेशर ज्यादा होता है। इसलिए ब्लड प्रेशर के मरीजों को चाहिए कि वह अपने डॉक्टर से सर्दियों में ब्लड प्रेशर की दवा बढ़ाने को कहें।
* सर्दियों में दिल के दौरे भी अधिक पड़ते हैं, इसलिए सुबह-सुबह सीने में होने वाले दर्द को नजरअंदाज न करें।
* सर्दियों मंे ज्यादा मीठा, कड़वा और नमकीन खाने से परहेज करें।
* सभी को अपने डॉक्टर से निमोनिया और फ्लू की वैक्सीन के बारे में पूछना चाहिए।
* बहुत छोटी उम्र और उम्रदराज लोगों के निमोनिया सर्दियों में जानलेवा हो सकता है, ज्यादा खतरे वाले लोगों खास कर दमा, डायबिटीज और दिल के रोगों से पीड़ित लोगों को फ्लू का वैक्सीन जरूर दिलाएं।
* सर्दियों में बंद कमरों में हीटर चला कर सोने से बचें।
* गीजर सहित सभी बिजली यंत्रों की अर्थिग की जांच करवाएं।
* मीठे पकवान बनाते समय चीनी का प्रयोग करने से बचें।
* एक तापमान से दूसरे तापमान में जाने से पहले अपने शरीर को संतुलित तापमान पर ढलने का समय दें।
* विटामिन 'डी' अच्छी सेहत के लिए बेहद जरूरी है। हर व्यक्ति को हर रोज सुबह 10 बजे से पहले और शाम 4 बजे के बाद कम से कम 40 मिनट धूप में जरूर बिताएं।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
संकट में महिलाओं के काम आएगा 'ब्रूच'
आईआईटी-दिल्ली के विज्ञान मेले में प्रदर्शित इस डिवाइस में एक माइक्रोप्रोसेसर के साथ एक मिनी कैमरा, वीडियो रिकॉर्डिग डिवाइस और जीपीएस कॉल प्रणाली संलग्न हैं। ब्रूच की सतह पर दो छिपे हुए बटन हैं, पहला बटन ऑडियो और वीडियो रिकॉर्डिग के लिए मिनी कैमरा को एक्टिवेट करने के लिए है और दूसरा बटन चयनित मोबाइल नंबर के लिए ऑटो कॉल को फॉर्वर्ड करने के लिए एक्टिवेट करने के लिए है।
माइक्रोप्रोसेसर के साथ एक मेमोरी चिप साक्ष्य को दर्ज करता है, जबकि ब्रूच के पिछले हिस्से में एक यूएसबी पोर्ट सिस्टम दर्ज आंकड़ों को ब्रूच से कंप्यूटर में भेजता है।
प्रतिक्षय ने कहा, "यदि कोई महिला या लड़की खुद को मुश्किल स्थिति में पाती है, तो वह कैमरा को एक्टिवेट करने के लिए पहले नंबर के बटन को दबा सकती है। स्थिति के खतरनाक हो जाने पर, वह दूसरे बटन (जीपीएस सिस्टम) को दबा सकती है जो सटीक स्थान को दिखा कर मदद के लिए नजदीकी पुलिस स्टेशन फोन करेगा।"
ओड़िशा की लड़कियों ने कहा, "दिल्ली में भीषण 'निर्भया' कांड की स्मृति हमें अब भी परेशान करती है। इसलिए हमने इस तरह के एक उपकरण विकसित करने का फैसला लिया।"
रेल पर नजर रखेगा यह उपकरण :
क्लेरेंस हाई स्कूल (बेंगलुरू) के ग्यारहवीं कक्षा के छात्र साद नासिर ने ऐसा डिवाइस विकसित किया है, जिसे रेल पर नजर रखने के लिए एक लोकोमोटिव पर रखा जा सकता है।
उसने कहा, "भारत का रेल नेटवर्क 65,000 किलोमीटर से अधिक है और ट्रैक के रखरखाव और मरम्मत पर सालाना 9,100 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किया जाता है। वर्तमान उपकरणों को रेल और ट्रैक की निगरानी के लिए ट्रैक के उस विशेष खंड को बंद करने की आवश्यकता होती है जिससे मूल्यवान ट्रैक क्षमता बर्बाद होती है।"
साद नासिर के द्वारा विकसित डिवाइस में रेल संबंधी टूट-फूट को मापने के लिए विभिन्न सेंसर लगे हैं। इन सेंसरों के परिणामों के संयोजन से, सटीकता में सुधार करना संभव हो जाएगा। उसके बाद डेटा क्लाउड को भेजा जा सकता है जहां विभिन्न उपकरणों की रीडिंग के संयोजन से सटीकता में सुधार किया जा सकता है।
यह डिवाइस अभी रेलवे प्रौद्योगिकी मिशन के विचाराधीन है। यह डिवाइस काफी संख्या में डेटा उपलब्ध कराता है जो रेल ऑपरेटरों को रेल संबंधी टूट-फूट के बारे में बेहतर भविष्यवाणी करने, रखरखाव की लागत को कम करने और इंजनों की सुरक्षा बढ़ाने में मदद कर सकते हंै।
मधुमेह रोगियों के लिए कारगर उपकरण :
केरल के एर्नाकुल में सेंट जोसेफ ईएमएचएसएस की एक छात्रा किरुथिका चंद्रशेखरन ने एक एक अभिनव सॉफ्टवेयर 'ओ एमईडी' विकसित किया है। यह दर्द रहित, नॉन इनवेसिव ग्लूकोज मॉनिटरिंग उपकरण है, जो मधुमेह रोगियों में हृदय और गुर्दे की बीमारियों की सही पहचान करता है।
उन्होंने कहा, "एक मधुमेह रोगी ग्लूकोमीटर रीडिंग पर एक साल में औसतन 32,000 रुपये खर्च करता है। मैंने इसके लिए एक पीएच शोध पत्र तैयार किया है जिससे इसमें सिर्फ 25 पैसे खर्च करने होंगे। इसके अलावा, मैंने एंड्रॉयड और क्लाउड कंप्यूटिंग का उपयोग कर एक स्वचालित उपकरण बनाया है, जो बीमारी के होने या बीमारी की प्रारंभिक अवस्था का पता लगा सकता है।"
देश के विभिन्न हिस्सों के विद्यालय के प्रतिभाशाली छात्रों द्वारा विकसित ये नवाचार उन 100 परियोजनाओं में शामिल हैं, जिन्हें आईआईटी दिल्ली में 4-8 दिसंबर तक आयोजित इंडिया इंटरनेशनल साइंस फेस्टिवल (आईआईएसएफ) के तहत आईआरआईएस (इनीशिएटिव फॉर रिसर्च एंड इनोवेशन इन साइंस) राष्ट्रीय विज्ञान मेले में प्रदर्शित किया गया है।
इंडो-एशियन न्यूज सर्विस।
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खरी बात
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शौचालय की समस्या से जूझती महिलायें
उपासना बेहार कितनी विडंबना है कि आजादी के 68 वर्ष बाद भी देश की बड़ी जनसंख्या खुले में शौच करने के लिए मजबूर है। 2011 की जनगणना के अनुसार देश...