केंद्र सरकार का दफ्तर होटल में, किराया 10 करोड़ रुपये सालाना!

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संदीप पौराणिक

केंद्र सरकार का एक दफ्तर होटल में चलता है और वर्तमान में उसका वार्षिक किराया 10 करोड़ रुपये से ज्यादा है। बीते 14 वर्षो में किराये के तौर पर यह दफ्तर 78 करोड़ रुपये से ज्यादा की धनराशि अदा कर चुका है। यह अचरज में डालने वाला है, मगर हकीकत यही है।

सूचना के अधिकार के तहत सामने आई जानकारी बताती है कि कस्टम एंड सेंट्रल एक्साइज का डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिस्टम एंड डाटा मैनेजमेंट का कार्यालय नई दिल्ली के चाणक्यपुरी स्थित होटल सम्राट की चौथी व पांचवीं मंजिल से चलता है।

मध्य प्रदेश के नीचम जिले के निवासी और सूचना के अधिकार के कार्यकर्ता चंद्रशेखर गौड़ ने सेंट्रल बोर्ड ऑफ एक्साइज एंड कस्टम (सीबीईसी) से जानना चाहा था कि क्या कोई दफ्तर होटल में चलता है। इस पर 11 अगस्त को उन्हें जो जवाब मिला है वह चौंकाने वाला है। इस जवाब में कहा गया है कि सीबीईसी का कार्यालय सम्राट होटल में चलता है। इसके लिए होटल का 14,071 वर्ग फुट क्षेत्र अधिकृत किया गया है।

केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी दिनेश मीणा द्वारा दी गई जानकारी के अनुसार, यह दफ्तर होटल में वर्ष 2002 से संचालित है। वर्तमान में इस स्थान का किराया 600़28 रुपये प्रति वर्ग फुट मासिक है। इस तरह एक माह का किराया 84 लाख 46575 रुपये होता है। वहीं वार्षिक किराया 10 करोड 13 लाख 58910 रुपये हो जाता है।

विभाग ने साफ किया है कि यह सिर्फ किराया है, इस दफ्तर में काम करने वाले कर्मचारियों या अधिकारियों के चाय, नाश्ता, भेाजन, हाई टी आदि पर कोई भी भुगतान नहीं किया गया है। वहीं विभाग की सूचना प्रौद्योगिकी पर होने वाली बैठकों, प्रशिक्षण के दौरान चाय-नाश्ते की राशि का मंत्रालय के निर्देशों के अनुसार भुगतान किया जाता है।

डायरेक्टरेट जनरल ऑफ सिस्टम एंड डाटा मैनेजमेंट का कार्यालय ऐसा दफ्तर है, जहां एसीईएस, एपीआईएस, आईसीईएस, ईडीडब्ल्यू, लैन, वैन परियोजनाएं महानिदेशक की देखरेख में अपर महानिदेशक स्तर के अधिकारी की अध्यक्षता में तैयार की जा रही हैं।

सूचना के अधिकार के तहत विभाग ने यह कार्यालय सम्राट होटल में संचालित हेाने का ब्यौरा वर्ष 2002 से दिया है। वर्ष 2002 से 2005 तक किराया 82 रुपये वर्ग फुट मासिक था, तब वार्षिक किराया एक करोड़ 38 लाख रुपये से ज्यादा हुआ करता था,जो वर्ष 2016 तक आते-आते बढ़कर 600़28 रुपये वर्ग फुट मासिक हो गया है। इस तरह अब वार्षिक किराया 10 करोड़ 13 लाख रुपये से ज्यादा हो गया है।

विभाग द्वारा बीते 14 वर्षो में एक प्रभाग के दफ्तरों के किराये पर किए गए भुगतान पर नजर दौड़ाएं तो यह राशि 78 करोड़ 22 लाख रुपये से उपर पहुंच जाती है।

गौड़ का कहना है कि एक विभाग के दफतर के किराए पर खर्च की गई राशि का जो ब्यौरा सामने आया है वह चौंकाने वाला है, लिहाजा सरकार को स्थायी जरूरत के विभागों के दफ्तरों के लिए स्वयं के भवन बनाना चाहिए, ताकि भवन निर्माण पर खर्च होने वाली राशि से ज्यादा किराये में न जाए। यह तो एक विभाग के दफ्तरों की बात सामने आई है और न जाने कितने दफ्तर किराये के भवन और होटलों में चल रहे होंगे। सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।

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