विशेष: गुजरात में दलितों पर जुल्म ढाने वाले 5 फीसदी लोग ही पाते हैं सजा
राज्य, खरी बात, फीचर Jul 26, 2016प्रधानमंत्री के गृह राज्य गुजरात में उच्च जाति के हिंदू गौरक्षकों द्वारा दलित युवकों की बेरहमी से पिटाई के मुद्दे पर संसद से लेकर सड़क तक हंगामा और कई जगह हिंसक प्रदर्शन जारी है। लेकिन एक वेबसाइट 'इंडिया स्पेंड' की एक रिपोर्ट से खुलासा हुआ है कि विगत दस वर्षो में दलितों और आदिवासियों के खिलाफ आपराधिक मामलों में सजा की दर राष्ट्रीय औसत से गुजरात में छह गुना कम है।
हाल के उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में गुजरात में दलितों के खिलाफ हुए अपराधों में सिर्फ 3.4 प्रतिशत मामले में ही सजा मिली थी, जबकि इस तरह के मामलों में सजा की राष्ट्रीय दर 28.8 प्रतिशत थी।
इसी तरह आदिवासियों के खिलाफ हुए अपराधों में सजा की राष्ट्रीय औसत दर 37.9 प्रतिशत थी, जबकि गुजरात में यह दर सिर्फ 1.8 प्रतिशत थी।
विगत 11 जुलाई को अशांति तब शुरू हुई, जब एक मृत गाय की खाल उतारने को अपराध मानकर गौरक्षकों ने चार दलित युवकों को कार से बांध दिया और कपड़े उतारकर उनकी पीठ की चमड़ी उधेड़ दी।
बाद में उच्च जाति के गौरक्षकों ने दलितों और मुस्लिमों को चेतावनी देने के लिए पिटाई का वीडियो सोशल मीडिया पर पोस्ट कर दिया। इसके अलावा अब विगत मई महीने में हुए एक और हमले का वीडियो भी वायरल हुआ है।
गुजरात सरकार ने संदिग्धों को गिरफ्तार कर लिया है, लेकिन प्रतीत होता है कि गौरक्षकों के दुस्साहस की जड़ गुजरात की आपराधिक प्रणाली में है जो निचली हिंदू जातिओं और आदिवासियों के खिलाफ अपराधों पर ध्यान देने में विफल रही है। ऐसी ही विफलता महाराष्ट्र और कर्नाटक में भी देखने को मिली है।
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़ों के अनुसार, साल 2014 में समाप्त होने वाले दशक में गुजरात में दलितों के खिलाफ आपराधिक मामलों में सजा की दर 5 प्रतिशत और आदिवासियों के खिलाफ ऐसे मामलों में सजा की दर 4.3 प्रतिशत है, जबकि राष्ट्रीय औसत दर सापेक्षिक रूप से 29.2 प्रतिशत और 25.6 प्रतिशत है।
इसका तात्पर्य यह है कि 100 मामलों में से 95 मामलों आरोपी बरी हो जाते हैं। गुजरात में दलितों के खिलाफ आपराधिक मामलों में सबसे कम सजा दर साल 2011 में 2.1 प्रतिशत थी और आदिवसियों के खिलाफ आपराधिक मामलों में सबसे कम सजा दर साल 2005 में 1.1 प्रतिशत थी।
भारतीय दंड संहिता की धारा के तहत दर्ज सभी आपराधिक मामलों में सजा की राष्ट्रीय औसत दर साल 2014 में 45.1 प्रतिशत थी।
कर्नाटक और महाराष्ट्र में भी दलितों और आदिवासियों के खिलाफ आपराधिक मामलों में सजा की दर गुजरात जैसी ही 5 प्रतिशत है, जबकि ऐसे मामलों में उत्तराखंड और उत्तर प्रदेश में सजा दर 50 प्रतिशत है।
दलित मानवाधिकारों पर राष्ट्रीय अभियान के संयोजक पॉल दिवाकर ने दोषपूर्ण आरोपपत्रों और जांच का हवाले देते हुए कहा, "न्यायिक प्रणाली में हर स्तर पर दलितों और आदिवासियों के साथ भेदभाव होता है।"