आईसेक्ट विश्वविद्यालय में वनमालीजी की जयंती मनाई गई
साहित्य, स्टूडेंट-यूथ Aug 02, 2016भोपाल: 2 अगस्त/ वनमालीजी दूरदर्शी दृष्टा और विवेकशील थे। वे विद्यार्थियों में विवेक, अनुशासन व चरित्र निर्माण पर ध्यान देते थे। उनके विद्यार्थी उनके मार्गदर्शन के कारण ही आज अपने जीवन में सर्वश्रेष्ठ हासिल कर पाए हैं। यह बात वनमालीजी के शिष्य सेवानिवृत्ति वरिष्ठ सी एस आई आर वैज्ञानिक डा. पद्माकर सराफ ने कही।
मौका था सुप्रसिद्ध साहित्यकार, कथाकार व राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त उच्चकोटि के शिक्षक श्री जगन्नाथ प्रसाद चैबे ‘‘वनमाली’’ की 104वीं जयंती का। आईसेक्ट विश्वविद्यालय का हिन्दी विभाग व वनमाली सृजन पीठ ‘‘वनमालीजी’’ की जयंती आईसेक्ट विश्वविद्यालय के सभागार में मना रहा था। श्री सराफ वनमालीजी को याद कर रहे थे। वनमालीजी खंडवा में उनके प्राचार्य व गुरु रहे। उन्होंने बताया कि खंडवा के पूर्व छात्र उनकी स्मृति में शीघ्र ही स्मारिका का प्रकाशन कर रहे हैं। ज्ञात हो कि आईसेक्ट विश्वविद्यालय के कुलाधिपति श्री संतोष चौबे वनमालीजी के सुपुत्र हैं।
कार्यक्रम के प्रारंभ में आईसेक्ट स्टूडियो द्वारा निर्मित ‘‘वनमाली’’ के जीवन पर आधारित लघु फिल्म दिखाई गई। इस अवसर पर हिंदी विभाग से प्रो. अरुणेश शुक्ल ने कहा कि आज भी वनमाली की कहानियों की प्रासंगिकता है। वनमाली की भाषा कम्युनिकेटिव है। साहित्य में परंपरा का महत्वपूर्ण स्थान है। वनमाली अपनी रचनात्मकता के माध्यम से हमारे बीच है। उनकी कहानियां छोटी हैं। उनका विचारक पक्ष रचनात्मक पक्ष पर हावी नहीं होता है। सुप्रसिद्ध संगीतकार श्री संतोष कौशिक ने वनमालीजी की बहुचर्चित कहानी ‘‘जिल्दसाज’’ का पाठ किया।
इस अवसर पर उनके शिष्य श्री के एस हांडा, पंजाब नेशनल बैंक से सेवानिवृत्ति अधिकारी, सेवानिवृत्ति चीफ इंजीनियर श्री शंकर अत्रे व श्री अशोक देशमुख ने भी वनमालीजी को याद करते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी। श्री अत्रे ने बताया कि वनमालीजी शिक्षा में अभिनव प्रयोग करते थे। हस्तलिखित पत्रिका निकालना, एक दिन स्टूडेंट डे मनाना, बागवानी, कारपेंटरी आदि की ट्रेनिंग देना। श्री अशोक देशमुखजी ने कहा कि विद्यालय में उस समय सभी विद्यार्थियों को प्रार्थना में उपस्थित रहना अनिवार्य रहता था।
वनमालीजी के पौत्र व आईसेक्ट के निदेशक श्री सिद्धार्थ चतुर्वेदी ने उन्हें बहुआयामी व्यक्तित्व का धनी बताया। उन्होंने कहा कि आज शिक्षक के रुप में उनकी आवश्यकता महसूस होती है। उनका आदर्श व मूल्य ही समाज को एक नई दिशा दे पाएंगे।
आईसेक्ट विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. वी के वर्मा ने अपने संबोधन में उन्हें याद करते हुए कहा कि शिक्षा के परिसर में आज एक शिक्षक को याद किया जा रहा है। अच्छे शिक्षक व विद्यार्थियों में अनुशासन की आवश्यकता है। हमें उनके जीवन से इसे सीखना चाहिए।
कार्यक्रम के अंत में सभी अतिथियों को स्मृति चिन्ह भेंट किये गये। कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग की विभागाध्यक्ष डा. संगीता पाठक ने किया। इस अवसर पर विश्वविद्यालय के कुलसचिव डॉ. विजय सिंह, विभागाध्यक्ष व बड़ी संख्या में फैकल्टी व विद्यार्थी उपस्थित थे।