बर्फ पिघलने पर निकल सकता है शीत युद्धकाल का रेडियोधर्मी कचरा

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टोरंटो, 5 अगस्त (आईएएनएस)| शोधकर्ताओं ने पाया है कि जलवायु परिवर्तन से हमेशा के लिए ग्रीनलैंड बर्फ में दफ्न हो चुके हानिकारक रेडियोधर्मी कचरा फिर से वापस आ सकते हैं। अमेरिकी सैन्य शताब्दी शिविर साल 1959 में ग्रीनलैंड बर्फ की चादरों के बीच बना था। इस गोपनीय जगह का इस्तेमाल शीतयुद्ध के समय आर्कटिक से तैयार परमाणु मिसाइल की व्यावहारिकता की जांच के लिए होता था।

साल 1967 में इस शिविर को बंद कर दिया गया। यहां मौजूद कचरा और ढांचागत समान हमेशा के लिए बर्फ में छोड़ दिए गए।

अध्ययन के प्रमुख टोरंटो के यॉर्क विश्वविद्यालय के लेखक विलियम कॉलगन ने कहा, "दो पीढ़ियों पहले, लोग दुनिया के कई हिस्सों में कचरे को दबा रहे थे, अब जलवायु परिवर्तन उन जगहों में बदलाव ला रहा है।"

कॉलगन ने कहा, "यह जलवायु परिवर्तन के इस सीख के बारे में हमें समझना चाहिए।"

जलवायु परिवर्तन ने पृथ्वी के किसी दूसरे भाग की अपेक्षा आर्कटिक को सबसे ज्यादा गर्म किया है। नए शोध में पता चला है कि शताब्दी शिविर को ढके रहने वाले बर्फ का वह हिस्सा इस शताब्दी के अंत तक पिघलना शुरू हो जाएगा।

अध्ययन कर रहे शोधकर्ता ने बताया कि यदि बर्फ पिघली तो शिविर के बुनियादी भाग और बचे हुए जैविक, रासायनिक और रेडियोधर्मी कचरा फिर से पर्यावरण में प्रवेश कर जाएंगे। इससे आसपास का पारिस्थितिक तंत्र नष्ट होगा।

कॉलगन ने कहा कि अमेरिका और डेनमार्क ने शिविर बंद करते समय सोचा था कि कचरा डिब्बे से बाहर नहीं आएगा, लेकिन अब इस कचरे की सफाई के लिए किसे जिम्मेदार ठहराया जाए, यह भी एक राजनीतिक मामला है।

अध्ययन दल ने शताब्दी शिविर पर मौजूद कचरे की सूची बनाई है और जलवायु परिवर्तन पर प्रभावों का अध्ययन कर रहा है।

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