बिहार व तमिलनाडु ने उप्र से सीखा चीनी का उत्पादन बढ़ाना
राज्य, व्यापार, फीचर Jul 18, 2016विद्या शंकर राय
भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान (आईआईएसआर) व किसानों की मेहनत की वजह से उत्तर प्रदेश के बिसवां चीनी मिल ने चीनी उत्पादन के मामले में अन्य राज्यों को पीछे छोड़ दिया है। अब तामिलनाडु व बिहार के गन्ना अधिकारियों ने यहां आकर चीनी के ज्यादा उत्पादन के गुर सीखे हैं।
लखनऊ स्थित आईआईएसआर के प्रधान वैज्ञानिक डॉ. अजय कुमार शाह ने आईएएनएस से विशेष बातचीत के दौरान बताया कि सीतापुर की बिसवां चीनी मिल में पिछले वित्तीय वर्ष में 12.41 प्रतिशत का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ था।
इसके बाद अब अन्य राज्यों के गन्ना अधिकारी आईआईएसआर के वैज्ञानिकों व बिसवां चीनी मिल के अधिकारियों से चीनी उत्पादन बढ़ाने के लिए उप्र में 1 से 15 जुलाई तक प्रशिक्षण हासिल किया है।
कृषि वैज्ञानिकों और बिसवां चीनी मिल की रिकॉर्ड उपलब्धि ने गन्ना की खेती और चीनी उत्पादन से जुड़े लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा है। फिलहाल पहले चरण में बिहार राज्य के नरकटियागंज, हसनपुर और हरीनगर के अलावा, तमिलनाडु की कोनी चीनी मिल उप्र के वैज्ञानिकों से टिप्स लेकर लौटे हैं।
अधिकारियों की मानें तो उत्तर प्रदेश के 13 चीनी मिलों के अधिकारियों को भी प्रशिक्षित किया गया।
अजय कुमार शाह ने बताया कि बिहार, तमिलनाडु और उप्र के 20 चीनी मिलों के अधिकारियों को चीनी उत्पादन बढ़ाने का प्रशिक्षण दिया गया। यहां इन्हें किसानों को भी लाभ होने के उपायों के बारे में भी बताया गया। अधिकारियों को गन्ने की अगेती व स्वस्थ फसलों के उत्पादन की जानकारी दी गई।
गौरतलब है कि भारतीय गन्ना अनुसंधान संस्थान लखनऊ ने पिछले पेराई सत्र में सीतापुर के बिसवां चीनी मिल परिक्षेत्र में काम किया था। किसानों से बातचीत कर उन्हें अगेती फसल के बारे में बताया था और नई प्रजातियों की बुवाई कर चीनी मिलों के साथ किसानों को होने वाले फायदों की जानकारी दी थी।
इसका परिणाम यह रहा कि किसानों को भी फायदा हुआ और चीनी मिल का उत्पादन 12.41 प्रतिशत पहुंच गया। चीनी मिल को भी 75.10 करोड़ रुपये की अतिरिक्त आय हुई थी।
बिहार के नरकटियागंज से आए एक अधिकारी ने बताया कि उप्र में विसवां चीनी मिल की सफलता वाकई चौंकाने वाली है। चीनी मिल के अधिकारियों व आईआईएसआर के वैज्ञानिकों से अनुभव साझा किया गया है।
अजय कुमार ने बताया कि किसानों को इस बात की सलाह दी जाती है कि वह अपने क्षेत्र की जलवायु और मिट्टी को ध्यान में रखकर ही गन्ने की किसी फसल की बुवाई का फैसला करें। जलवायु में अंतर आने की वजह से भी फसलों के उत्पादन में अंतर दिखाई पड़ता है।
आईआईएसआर के प्रधान वैज्ञानिक कहते हैं, "गन्ने की फसल की बुवाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि जिस किसी किस्म का चयन किया जाए, वह उस क्षेत्र की आबोहवा के अनुकूल हो।"
उन्होंने कहा, "उदाहरण के तौर पर यदि तामिलनाडु में गन्ने की किसी किस्म का उत्पादन अच्छा हो रहा है तो यह जरूरी नहीं है कि उप्र और बिहार में उसी किस्म की फसल का उत्पादन अच्छा होगा। यह पूर्णतया वहां की जलवायु पर निर्भर है।"