झारखंड में डोभे बने 'मौत का कुआं'

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मनोज पाठक

रांची, 15 जुलाई (आईएएनएस)| झारखंड सरकार की महत्वकांक्षी योजना में शामिल डोभा निर्माण योजना (तालाबनुमा छोटी संरचना) अब राज्य के लोगों के लिए 'मौत का कुआं' साबित हो रही है। राज्य में जल संचयन और जल संरक्षण के उद्देश्य से राज्यभर में करीब 200 करोड़ रुपये खर्च कर 1.77 लाख से ज्यादा डोभे का निर्माण कराया गया है।

झारखंड में सरकार ने राज्यभर में बरसात का पानी जमा करने के लिए पिछले दो महीने में पौने दो लाख डोभे का निर्माण करवाया है। इसका उद्देश्य गांव का पानी गांव में तथा खेत का पानी खेत में जमा करने का है, लेकिन इस पहली बरसात में ही ये डोभे जानलेवा साबित हो रहे हैं। राज्य में डोभों में डूबने से अब तक 24 बच्चों की मौत हो चुकी है।

विशेषज्ञ मानते हैं कि डोभे के डिजाइन में ही कमी है। हालांकि सरकार अब डोभा की घेराबंदी करने की बात कर रही है।

डोभा के विशेषज्ञ और भूगर्भशास्त्री नीतीश प्रियदर्शी कहते हैं कि झारखंड के पड़ोसी राज्य पश्चिम बंगाल में भी इस तरह के डोभे का निर्माण करवाया गया है, लेकिन वहां ऐसी घटना नहीं घटी है। उन्होंने कहा कि सरकार डोभा बनाने में हड़बड़ी दिखाई और कई अहम पहलुओं पर ध्यान नहीं दिया।

उन्होंने कहा, "कई स्थानों पर जहां चिकनी मिट्टी है वहां भी डोभा का निर्माण करा दिया गया जबकि कई डोभा में मेढ़ भी नहीं बनाए गए हैं, ऐसे में बच्चे खेल के दौरान फिसल कर डोभा के अंदर चले जाते हैं।"

एक अन्य भूगर्भ शास्त्री का कहना है कि 30 फीट लंबाई, 30 फीट चौड़ाई तथा 10 फीट गहराई के बने डोभा सीढ़ीनुमा बनाए जाते हैं, लेकिन झारखंड में सीढ़ियों के बीच काफी अंतर रखा गया है, इस कारण सीढ़ी बनाने का मकसद खत्म हो जाता है।

राज्य पुलिस मुख्यालय के आंकड़ों के मुताबिक, राज्यभर में डोभा में डूबने से अब तक 24 बच्चों की मौत हो गई है। गढवा जिले में डोभा में डूबने से अब तक पांच बच्चों की मौत हुई है, जबकि लातेहार व दुमका में तीन, चतरा, रांची, गिरीडीह व गुमला में दो-दो तथा हजारीबाग, पलामू, खूंटी, चाईबासा और धनबाद जिले में डोभा में डूबने से एक-एक बच्चे की मौत हो चुकी है।

राज्य के कृषि मंत्री रणधीर कुमार सिंह कहते हैं कि कम समय में ही सरकार ने डोभा निर्माण के लक्ष्य को पूरा किया है। उन्होंने बताया कि दो से ढाई महीने के अंदर राज्य में एक लाख 77 हजार 475 डोभों का निर्माण करवाया गया है। उन्होंने दावा किया कि डोभा निर्माण में गुणवत्ता का पूरा ख्याल रखा गया है। वर्षा जल संरक्षण के इस कार्य से किसानों को खरीफ ही नहीं रबी फसल में भी इसका लाभ मिलेगा।

ग्रामीण विकास विभाग के सचिव एऩ एऩ सिंह कहते हैं कि डोभे की घेराबंदी और वहां खतरे के निशान के रूप में लाल झंडा लगाने की योजना सरकार बना रही है। उन्होंने कहा कि सरकार डोभा के समीप पौधरोपण करने पर भी विचार कर रही है।

इधर, विपक्ष भी सरकार पर डोभा निर्माण को लेकर निशाना साध रही है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्य के पूर्व मंत्री क़े एऩ त्रिपाठी कहते हैं कि डोभा निर्माण को लेकर सरकार इतनी जल्दबाजी में थी कि जहां भी जगह मिला वहीं डोभा का निर्माण कराया गया। उन्होंने बताया कि कई स्थानों में गांव के समीप तथा आबादी वाले क्षेत्रों में डोभा का निर्माण करा दिया गया है। उन्होंने कहा कि डोभा अब 'मौत का कुआं' बनकर रह गया है।

बहरहाल, राज्य में बने डोभा के निर्माण से किसानों और जल संरक्षण को कितना लाभ मिलता है, यह तो भविष्य के गर्त में है। मगर डोभा को यहां के लोग अब 'मौत का कुआं' जरूर बताने लगे हैं।

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