सूखाग्रस्त इलाकों में किनवा की खेती फायदेमंद

राज्य, राष्ट्रीय, फीचर

विद्या शंकर राय

उत्तर प्रदेश में बुंदेलखंड जैसे अन्य सूखाग्रस्त इलाकों के परेशान किसानों के लिए किनवा फल की खेती उम्मीद की किरण बनकर सामने आई है। कम लागत में इसकी अच्छी उपज होती है।

किनवा में पाए जाने वाले पोषक तत्वों और किसानों को होने वाले लाभों को देखकर अधिकारी देश के सूखाग्रस्त इलाकों के लिए किनवा को किसी वरदान से कम नहीं मानते।

कृषि से जुड़ी राज्यस्तरीय नोडल एजेंसी के मुख्य कार्यकारी अधिकारी (सीईओ) आन्जनेय सिंह ने कहा कि दक्षिण अफ्रीकी मूल की फसल किनवा देश के सूखाग्रस्त इलाकों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

सिंह ने बताया, "प्रोटीन और पोषक तत्वों से भरपूर सुपर फूड की श्रेणी में गिने जाने वाला किनवा कम लागत में अधिक लाभ देता है। जलमित्र के रूप में पहचान बना चुकी यह फसल 90 से 120 दिनों में तैयार हो जाती है और एक एकड़ में इसकी खेती से किसानों को 50 हजार रुपये तक की आय हो सकती है।"

इस फसल के लिए रेतीली मिट्टी उपयुक्त है। शीतकालीन मौसम में अच्छा उत्पादन देने वाली किनवा के लिए 15 से 35 डिग्री सेल्सियस का तापमान अच्छा होता है।

सिंह ने बताया कि औसतन 560 मिलीमीटर वर्षा वाले क्षेत्रों में किनवा की खेती की जा सकती है। इसकी खेती के लिए लाइन पद्धति सवरेत्तम है। तीन से चार इंच गहराई में तीन से चार बीज डालें। पौधे से पौधे की दूरी 10 से 14 इंच रखें। इसके गिरने की संभावना न के बराबर होती है।

उन्होंने खेती की विधि बताते हुए कहा कि जैविक खाद के प्रयोग को प्राथमिकता देनी चाहिए। तैयारी के समय एक एकड़ में दो ट्रॉली जैविक खाद व 150 किलोग्राम नीम पाउडर डालना चाहिए। रासायनिक खाद का प्रयोग अगर करना चाहें तो 100 किलोग्राम सुपर फॉस्फेट, 50 किलोग्राम पोटाश तथा 15 किलोग्राम यूरिया डालना चाहिए।

सिंह के मुताबिक, किनवा सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद है। इसकी खूबियां ही खेती के लिए किसानों को प्रोत्साहित करती हैं। किनवा रक्त चाप और मधुमेह नियंत्रण में सहायक होता है। इसमें सभी विटामिन और खनिज, काफी मात्रा में प्रोटीन व फाइबर मिलते हैं।

उन्होंने बताया कि यह पाचनतंत्र मजबूत करता है और ऑस्टिओपेरोसिस, ऑर्थराइटिस व हृदय रोग नियंत्रण में सहायक होता है। भ्रूण, बच्चों व वयस्कों की मांसपेशियों के निर्माण में सहायक होने के साथ यह खून की कमी भी दूर करता है।

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