संतोष चौबे का उपन्यास और कहानियां अब मलयालम में

साहित्य

भोपाल: 20 सितम्बर/ भोपाल के साहित्य प्रेमियों के लिए शायद यह पहला मौका ही होगा जब एक ही मंच से मित्र कवियों और कथाकारों के बीच कविताओं और कहानियों की जुगलबंदी हुई हो। एक ओर जहां मंच से गंभीर, राजनैतिक और मानवीय प्रसंग की कविताओं का पाठ किया गया, वहीं कथाकारों ने हमारे समाज के भीतर व्याप्त विसंगतियों से दर्शकों को अपनी कहानी के माध्यम से रूबरू कराया। मंगलवार की शाम स्वराज भवन संस्थान में दर्शक इस अनूठी जुगलबंदी के साक्षी बने। मौका था वनमाली सृजनपीठ और आईसेक्ट विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित शब्द, ध्वनि और दृश्य के अंतर्गत आयोजित रचना पाठ और पुस्तक विमोचन का।

कवि, कथाकार संतोष चौबे षष्ठीपूर्ति प्रसंग के तहत आयोजित इस कार्यक्रम में चौबे के उपन्यास ”क्या पता कामरेड मोहन“ तथा उनके कहानी संग्रह ”बीच प्रेम में गांधी“ के मलयालम अनुवाद का विमोचन किया गया। इसी बीच स्वयं प्रकाश की कृति ”बीच में विनय“ तथा मुकेश वर्मा के कहानी संग्रह ”सत्कथा कही नहीं जात“ भी जारी किए गए।

कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए साहित्यकार शशांक ने कहा कि आज भारतीय साहित्य के लिए पहचान की जरूरत है और यह हिन्दी तथा प्रादेशिक भाषाओं के एक प्रतिनिधि स्वर से ही संभव होगा। उन्होंने ये भी कहा कि ये प्रयत्न आश्वस्त करते हैं कि हमारे साहित्य को गहराई से जानने के लिए यह सार्थक कदम है। मुख्य वक्ता के रूप में शिरकत कर रहे अनुवादक वी.जी. गोपालकृष्णन ने कहा कि मनुष्य के जीवन संघर्ष से जब साहित्यकार जुट जाता है तब श्रेष्ठ साहित्य का जन्म होता है। प्रतिबद्ध साहित्यकार ही जन संघर्ष से जुटने में सफल होता है।

इस मौके पर कविता और कहानियों की अनूठी जुगलबंदी भी देखने को मिली। कवि बलराम गुमास्ता ने ”हे राजन, करो हमले, विसर्जन, खुदीराम बोस की अंतिम यात्रा का वर्णन“ तथा कवि महेन्द्र गगन ने ”मंगलगान, सरेआम, आदत नींद, दृश्य, इरादा“ जैसी समसामयिक और मानवीय संवेदनाओं की कविताओं का पाठ किया, तो कथाकार संतोष चैबे ने ”लेखक बनाने वाल“ और मुकेश वर्मा ने ”दिलों से एक आवाज़ उपर उठती हुई“ कहानी का पाठ किया। संचालन कला समीक्षक विनय उपाध्याय और पंकज सुबीर ने मिलकर किया।

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