भोरमदेव अभयारण्य में हैं जैव विविधताएं

पर्यटन

चंद्रशेखर शर्मा (08:54) 

कवर्धा, 3 अगस्त (आईएएनएस/वीएनएस)। वर्ष 2001 से स्थापित भोरमदेव अभयारण्य अपनी गोद में जैव विविधताएं समेटे हुए हैं। दुर्लभ जड़ी-बूटियों, पेड़-पौधों के साथ ही साथ वन्य जीवों की मौजूदगी और प्राकृतिक सौंदर्य इस अभयारण्य की खूबसूरती को चार चांद लगा रहा है। इन्हीं कारणों से प्रकृति प्रेमी भी इस ओर खिंचे चले आते हैं।

अभयारण्य बनाने के बाद से डीएफओ आलोक तिवारी के प्रयासों से विगत वर्ष अभयारण्य पर्यटकों के भ्रमण के लिए खोला जाने लगा। पगमार्क टूर एंड ट्रेवल्स ने जिप्सी वाहन से पर्यटकों को प्रकृति को नजदीक से निहारने का मौका दिया है।

शासन प्रशासन यदि ईमानदारी से क्षेत्र को जंगल सफारी के रूप में विकसित करे तो आने वाले समय में जिले का नाम अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक पहुंच सकता है।

बहरहाल, अभयारण्य क्षेत्र के वन्यजीवों के लिए अनुकूल परिस्थितियों के चलते दुर्लभ जीवों का दिखाई देना बदस्तूर जारी है। रेप्टाइल वर्ग की भूरी और पीलीधारियों की छिपकली के साथ-साथ कई दुर्लभ जीव नोवा सोसाइटी के सर्वे में सामने आने लगे हैं।

अभयारण्य क्षेत्र में इन दिनों बाघ के बच्चे की तरह दिखने वाला जंतु 'सीवेट' दिखाई दे रहा है, जो दिखने में काफी सुंदर नजर आता है। इसे पहली बार देखने पर बाघ के बच्चे होने का अभास होता है। यह दुर्लभ प्रजाति भोरमदेव अभयारण्य क्षेत्र में दिखाई दे रही है।

भोरमदेव अभयारण्य अपनी जैव विविधताओं के चलते सदैव से ही सुर्खियों में बना रहा है। हालांकि यह प्रजाति संभवत: बिल्ली की प्रजाति की तरह होती है। यह प्रजाति अमूनन बस्तर के इंद्रावती व बारनवापारा क्षेत्र में पाई जाती है। सीवेट के मिलने से विभाग में काफी उत्साह बना हुआ है।

स्तनधारी जीव सीवेट जिसे कई लोग कबरबिज्जु की तरह दिखाई देने के कारण धोखा भी खा जाते हंै, जबकि सीवेट लगभग चार फीट लंबा और एक फीट चौड़ा होता है। साथ ही धनुषाकार शरीर का होना इसकी विशेषता है।

डीएफओ आलोक तिवारी ने बताया, "क्षेत्र में सीवेट की संख्या लगभग 10 के आस-पास बताई जा रही है। ये खासकर प्रतापगढ़ व मंडलाटोला क्षेत्र में दिखाई देते हैं।"

उन्होंने बताया कि शरीर पर काली धारियों के साथ शरीर में पीले रंग का धब्बा इसकी खूबसूरती को बढ़ा देता है। इसकी आंखें काली और बड़ी होती हैं। इसी कारण कारण दूर से देखने पर यह बाघ के बच्चे की तरह दिखाई देता है।

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