आयातित नेताओ से घिरती भाजपा सरकार, बुंदेलखंड के विधायक बने फांस

राज्य, खरी बात

धीरज चतुर्वेदी

अन्य दलो से आयातित नेताओ को महत्व देने की रणनीति अब भाजपा सरकार के लिये गले की फांस बनती जा रही है। मध्यप्रदेश की विधानसभा के इतिहास की पहली घटना होगी जब अपने ही विधायक के कारण सदन की कार्यवाही रोकी गई हो। सरकार को घेरने वाले बुंदेलखंड के दोनो विधायक मूल रूप से भाजपा मानसिकता के नही रहे है। विधायक आर डी प्रजापति ने बसपा से अपनी राजनैतिक पारी की शुरूआत की। वहीं विधायक मानवेन्द्रसिंह की कांग्रेसी विचारधारा रही है।

चुनाव के समय अपनो को ठुकरा कर दल बदल करने वालो को अपना बनाना अब भाजपा के लिये मुसिबत बनता जा रहा है। बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की चंदला विधानसभा से आरडी प्रजापति और महाराजपुर से विधायक मानवेन्द्र सिंह के कारण भाजपा सरकार घिरी नजर आ रही है। दोनो ही विधायको का भाजपा की विचारधारा से लेनादेना नही रहा है। कभी बहुजन समाज पार्टी का झंडा लेकर घूमने वाले आरडी प्रजापति की राजनैतिक पृष्ठभूमि पर गौर किया जाये तो वे तिलक, तराजू, तलवार के नारे का गान किया करते थे।

1996 में खजुराहो लोकसभा से वे बसपा से प्रत्याशी रहे। तब उमाभारती ने यह चुनाव जीता था। प्रजापति 59827 मत पाकर तीसरे स्थान पर रहे थे। वर्ष 1998 में आरडी प्रजापति ने चंदला विधानसभा क्षेत्र से बसपा से चुनाव लडे। 18656 मत पाकर वे तीसरे नंबर पर रहे। वर्ष 2000 में वे लवकुशनगर मंडी के अध्यक्ष बने। पद मिलते ही उन्होने छतरपुर जिले में पूरी जोर शोर से बसपा की ताकत बढानी शुरू कर दी। वर्ष 2003 में सुरक्षित महाराजपुर विधानसभा से प्रजापति ने किस्मत अजमाई। भाजपा के रामदयाल अहिरवार विजय हुये पर आरडी प्रजापति ने 25331 मत पाकर सभी को चैंका दिया। परिसीमन के बाद 2008 में चंदला विधानसभा सुरक्षित घोषित हो गई। तब बसपा से पाला बदलकर आरडी प्रजापति ने उमाभारती की भाजश से चुनाव लडा। वे मात्र 958 मतो से पराजित हो गये।

उमाभारती के भाजपा में शामिल होने के बाद 2013 के विधानसभा चुनाव में आरडी प्रजापति को भाजपा ने अपने अविजय नेता रामदयाल अहिरवार की जगह मैदान में उतार और वे करीब 40 हजार मतो के अंतर से विजय हुये। आरडी प्रजापति का विवादो से पुराना नाता रहा है। वर्ष 2000 में मंडी अध्यक्ष रहते हुये उन पर मंडी सचिव महेन्द्र अग्रवाल के साथ मारपीट करने पर धारा 342,353,332,506बी34 का अपराध दर्ज हुआ था। तब इन पर आरोप लगा था कि कुछ दाल मिल मालिको से सांठगांठ कर फर्जी पीटपास के जरिये दाल ढोने का सचिव ने विरोध किया था। तो उसे एक दालमिल में बंद कर मारपीट की थी। जिस पर लवकुशनगर थाना पुलिस ने अपराध किया था।

इस घटना के बाद छतरपुर शहर के मुख्य भोपाल मार्ग पर आरडी प्रजापति के पुत्र कमलेश प्रजापति ने एक महिला राखी चौरसिया की गोली मारकर हत्या कर दी थी। चर्चाये थीं कि आरडी प्रजापति के इस महिला के साथ कथित रूप से अवैध संबध थे जिससे पुत्र कमलेश नाराज रहता था। इस मामले में कमलेश को सजा हुई जो सतना जेल में बंद है। विधायक बनने के बाद भी आरडी प्रजापति पर रेत माफियाओ से सबंध के आरोप लगते रहे। वहीं दूसरी ओर वे इन माफियाओ का विरोध भी करते देखे गये। विधायक प्रजापति के खिलाफ जून माह में राजस्व कर्मचारी संघ ने कलेक्टर व अन्य अधिकारियो को ज्ञापन भी सौंपा था। जिसमें विधायक के दोहरे चरित्र होने का आरोप लगाया गया था। राजस्व अधिकारियो का कहना था कि बांरबंद रेत खदान से जेसीवी, एलएंड टी, आधा दर्जन ट्रक जब्त करने पर विधायक प्रतिनिधि रूद्रप्रताप ने राजस्व निरीक्षक सूर्यमणि मांझी के साथ लाठियो से मारपीट की। इस मामले ने खुलासा कर दिया था कि रेत के अवैध उत्खनन मामले में स्वयं विधायक की भूमिका संदिग्ध है। इसी तरह कुछ माह पूर्व ही विधायक प्रजापति बंशिया थाना प्रभारी को हटाने के लिये थाने में ही धरने पर बैठ गये थे। चर्चा रही कि थाना प्रभारी ने भी उन रेत माफियाओ पर सख्ती कर दी थी जो विधायक से जुडे है।

विधायक प्रजापति ने मई माह में बाहमण समाज को गालियां दे दी थी तब समूचे बुंदेलखंड में उनके खिलाफ प्रदर्शन हुये थे। भाजपा के लिये एक अन्य स्वयं के ही महाराजपुर से विधायक मानवेन्द्र सिंह भी कांग्रेस विचाारधारा के रहे है। वे दिग्विजय सिंह के कार्यकाल मे मंत्री रहे। कांग्रेस की अन्दरूनी राजनीति के कारण उन्हे 2008 में टिकिट नही मिला तो उन्होने निर्दलीय चुनाव जीता। 2013 में भाजपा ने विवादो के बाद भी उन्हे महाराजपुर क्षेत्र से प्रत्याशी बनाया। मानवेन्द्रसिंह ने भी कानूनी व्यवस्था को लेकर अपनी सरकार को घेर रखा है। कुल मिलाकर नौकरशाही से तंग आकर ही दोनो विधायक अपनी सरकार की मुखलफत कर रहे है। यह भी सच है कि दूसरे दलो से भाजपा में आने के बाद विचारधाराओ का टकराव भी साफ झलकता है।

(लेखक जान सरोकारों को लेकर सक्रिय वरिष्ठ पत्रकार हैं.)

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