इंतज़ार है

साहित्य

नैना शर्मा

आज भी वो बारिश है,
वो बूंदें है,
फिर वही बौछार है,
पर कल किसी का इंतज़ार था,
और आज भी किसी का इंतज़ार है।।

कुछ इस तरह गया वो मुँह मोड़ कर मुझसे,
बिखर गई हूँ मैं,
टूटे हुए शाख़ के पत्ते जैसे,
क्यूँ मोड़ लिया उसने अपना मुँह,
कर दिया मुझे तन्हा,
कल भी उसका इंतज़ार था,
अब भी उसका इंतज़ार है।।

खायीं थीं कसमे जिन्होंने ताउम्र साथ रहने की,
आज ज़रा सी ग़लतफहमी में मेरा साथ छोड़ गया,
सावन की हरियाली में,
मन में जेठ सी तपन छोड़ गया,
उस मीत का मुझे कल भी इंतज़ार था,
आज भी इंतज़ार है।।

आज सब और काले बादल छाये हैं,
घनघोर घटा मचली है,
फिर भी न जाने क्यूँ मन,
आज भी सूखा है,
किसी ने मन के बाग़ को,
खिले चमन से बीहड़ बना दिया,
रौनकें थी जहाँ आज वीराना बना दिया,
फिर भी उस मीत का कल भी इंतज़ार था,
अब भी इंतज़ार है।।

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