
माता घंटीयाली : जहां एक-दूसरे से ही लड़ पड़े थे पाकिस्तान सैनिक
फीचर Oct 04, 2016रायपुर, 4 अक्टूबर (आईएएनएस/वीएनएस)। पाकिस्तान ने जब-जब अपनी नापाक करतूत को अंजाम दिया है उसे मुंह की ही खानी पड़ी है। पश्चिमी राजस्थान स्थित जैसलमैर से 120 किलोमीटर दूर और माता तनोट मंदिर से महज 5 किलोमीटर पहले माता घंटीयाली का दरबार है। माता घंटीयाली और माता तनोट की पूजा बीएसएफ के सिपाही ही करते हैं। 1965 की जंग में माता का ऐसा चमत्कार दिखा कि पाकिस्तानी सेना वहीं ढेर हो गई।
सिद्ध दरबार माता घंटीयाली में पाकिस्तान सैनिकों की नापाक करतूत माता के पहले चमत्कार के सामने घुटने टेक गई। मंजर ऐसा कि आमने-सामने आती पाक सेना ने एक-दूसरे को ही अपना दुश्मन समझा और लड़ पड़े। वहीं माता के मंदिर में घुसे पाक सैनिक आपसी विवाद में ही ढेर हो गए। तीसरे चमत्कार में पाक सैनिक अंधे हो गए।
ऐसे चमत्करी दरबार में वीएनएस प्रतिनिधि की मुलाकात मंदिर के पुजारी (बीएसएफ सिपाही) पंडित सुनील कुमार अवस्थी से हुई। उत्तरप्रदेश निवासी अवस्थी ने वीएनएस प्रतिनिधि को माता के दरबार से संबंधित बहुत सी रोचक बातें बताई।
अवस्थी ने वीएनएस प्रतिनिधि रविशंकर शर्मा को बताया कि संवत 808, 1200 वर्ष पुराना यह सिद्ध दरबार है। 1971 युद्ध में भारतीय सेना का साथ देने वाली माता तनोट की छोटी बहन माता घंटीयाली ने 1965 के युद्ध में भारतीय सेना का साथ निभाया। माता के आशीर्वाद और प्रताप के कारण पाकिस्तानी सैनिक यहां आपस में लड़ कर मर गए।
अवस्थी के मुताबिक, माता का यहां ऐसा चमत्कार रहा कि 1965 की जंग के दौरान पाकिस्तानी सेना आमने-सामने से आने लगी तो अपनी ही सेना को भारतीय सैनिक समझ एक-दूसरे पर ही गोलियां दागने लगे और पाकिस्तानी सेना खत्म हो गई। वहीं पाकिस्तानी सेना घंटीयाली माता मंदिर तक पहुंच गई थी। मंदिर को नुकसान पहुंचाया, तो माता का और चमत्कार हुआ और आपसी विवाद के चलते सारे पाकिस्तानी सैनिक आपस में लड़ कर मर गए।
अवस्थी ने बताया कि घंटीयाली तक पहुंची एक अन्य पाकिस्तानी टुकड़ी ने माता घंटियाली की मूर्ति का श्रृंगार उतारने की नापाक हरकत की थी। इसके चलते सारे पाकिस्तानी सैनिक अंधे हो गए थे।
माता घंटीयाली और माता तनोट की पूजा बीएसएफ के सिपाही ही करते हैं। 1965 और 1971 की जंग में दोनों देवियों के आशीर्वाद से तथा चमत्कार से पाकिस्तानियों को धूल चटाने के बाद बीएसएफ ने दोनों मंदिरों का जिम्मा अपने हाथों ले लिया। दोनों मंदिर में बीएसएफ का सिपाही ही पंडित होता है। अभी यह जिम्मेदारी बीएसएफ की 135वीं वाहिनी के पास है।