अकबर के जीवन पर पड़ेगी नई रोशनी

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नई दिल्ली, 16 अक्टूबर (आईएएनएस)। इतिहास में अक्टूबर का महीना राष्ट्रपिता महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन का ही नहीं, बल्कि एक और विरले बादशाह के जन्म का भी महीना है, जिसका नाम इतिहास के पन्नों पर सुनहरे अक्षरों में लिखा है।

मुगल बादशाह 'अकबर' का जन्म इसी महीने में 15 तारीख को 1542 ईस्वी में हुआ था और उनकी मृत्यु भी अक्टूबर में ही 25 तारीख को 1605 ईस्वी में हुई थी। वर्ष 2016 इसलिए भी खास है, क्योंकि यह वर्ष उनके गद्दीनशीं होने का 460वां वर्ष भी है।

बादशाह अकबर के जीवन की और बहुत सारी रोचक और अनजानी जानकारियों से भरपूर उपन्यास 'अकबर' जल्द ही राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित हो रहा है। उपन्यासकार शाजी जमां का नया उपन्यास महज कोरी कल्पनाओं के सहारे बुनी गई कोई फंतासी नहीं है, बल्कि यह इतिहास की वास्तविकता का आख्यान है।

शाजी जमां दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से इतिहास में स्नातक हैं। थामसन फाउंडेशन, सीएनएन और बीबीसी वल्र्ड सर्विस जैसे संस्थानों से शुरुआती ट्रेनिंग पूरी करने के बाद वो इलेक्ट्रॉनिक पत्रकारिता में बरसों से कार्यरत हैं।

'अकबर' बाजार से लेकर दरबार तक के ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर रचा गया उपन्यास है। इस उपन्यास को लिखने के लिए लेखक ने 20 सालों तक ऐतिहासिक तथ्यों और दस्तावेजों, चित्रों आदि की खोजबीन की है। सचाई की तह तक पहुंचने की इस यात्रा के दौरान 8 सालों की मेहनत के बाद उपन्यास की पांडुलिपि को आखिरी शक्ल दिया जा सका है।

शाजी जमां ने कोलकाता के इंडियन म्यूजियम से लेकर लंदन के विक्टोरिया एल्बर्ट तक के बेशुमार संग्रहालयों में मौजूद अकबर की या अकबर द्वारा बनाई गई तस्वीरों को जाना-समझा है। बादशाह और उनके करीबी लोगों की इमारतों का मुआयना किया है और 'अकबरनामा' से लेकर 'मुन्तखबुत्तवारीख', 'बाबरनामा', 'हुमायूंनामा' और 'तजि़करातुल वाकयात' जैसी किताबों का और जैन और वैष्णव संतों और ईसाई पादरियों की लेखनी का भी अध्ययन किया है।

दरअसल, यह उपन्यास न केवल इतिहास से जुड़े कई तरह के मिथ को तोड़ता है, बल्कि नई जानकारियों को प्रमाण के साथ सामने ला रहा है। उपन्यास के कई आकर्षणों में से एक अकबर के जीवन की वे दुर्लभ रंगीन तस्वीरें हैं, जिन्हें किताब में शामिल किया गया है।

अकबर के समय के भारत और अकबर के साम्राज्य का नक्शा जानेमाने नक्शानवीस 'फैज हबीब' ने खास तौर पर इसी उपन्यास के लिए तैयार किया है। मुगल वंश वृक्ष के साथ ही कई अन्य महत्वपूर्ण जानकारियां भी किताब के अंत में पाठकों के साथ साझा की गई हैं।

'अकबर' अपने कवर डिजाइन को लेकर पहले ही सोशल मीडिया में चर्चा का विषय बना हुआ है। इसका कारण कवर पर इस्तेमाल किया गया 'अकबर की ढाल का असल चित्र' है जो 'छत्रपति शिवाजी महाराज वास्तु संग्रहालय, मुंबई' में मौजूद है। इस ढाल से बादशाह अकबर की शख्सियत के कई पहलू जाहिर होते हैं। दरअसल, ढाल के बीचों-बीच सूर्य की छवि है।

बादशाह अकबर सूर्य के उपासक थे और हर रोज सुबह उठ कर सूर्य के एक हजार नाम (सूर्यसहस्रनाम) का जाप किया करते थे। इसके साथ ही ढाल में चारों तरफ राशियां अंकित हैं। इतिहासकारों का मानना है कि बादशाह अकबर का ज्योतिष में गहरा यकीन था। ढाल पर फारसी में लिखा है- 'बुलंद इकबाल शहंशाह अकबर' यानी वो बादशाह जिनकी तकदीर बुलंद है।

उपन्यास का आवरण पूजा आहूजा ने तैयार किया है और टाइटल की कैलिग्राफी राजीव प्रकाश खरे ने की है। अमेजन पर उपन्यास की प्री-बुकिंग शुरू हो चुकी है और यह बेस्टसेलर लिस्ट में तेजी से ऊपर चढ़ रहा है।

राजकमल प्रकाशन समूह के संपादकीय निदेशक सत्यानंद निरूपम ने उपन्यास के बारे में कहा, "पिछले 6 महीनों में लेखक-संपादक कई बार साथ बैठे। मैं शाजी जमां की तैयारी से गहरे मुत्मइन हूं। इस किताब से पहले अकबर पर हिंदी में राहुल सांकृत्यायन की ही किताब हमने ऐसी पढ़ी है, जिसका ध्यान है। एक लम्बे अरसे बाद हिंदी में इतिहास से जुड़े किसी विषय पर ऐसी तैयारी से लिखा गया कोई उपन्यास आ रहा है।"

राजकमल प्रकाशन समूह के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी ने कहा, "शाजी जमां हमारे पुराने लेखक हैं, इनके पिता बदीउज्जमां साहेब की भी किताबें राजकमल से ही प्रकाशित हुई हैं। 'अकबर' उपन्यास हिंदी प्रकाशन में शायद एक नया मोड़ साबित हो।"

स्पीकिंग टाइगर के प्रकाशक और सह-संस्थापक रवि सिंह ने 'अकबर' के अंग्रेजी संस्करण के प्रकाशन के निर्णय के बारे में बताते हुए कहा, "स्पीकिंग टाइगर ने 'अकबर' के अंग्रेजी संस्करण के प्रकाशन का निर्णय लिया है। यह एक संग्रहणीय काम है जिसमें ऐतिहासिकता के साथ-साथ साहित्यिक उत्कृष्टता शामिल है।"

राजकमल प्रकाशन से शाजी जमां के दो उपन्यास 'प्रेमगली अति सांकरी' और 'जिस्म जिस्म के लोग' पहले से प्रकाशित हैं।

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