PIB का खंडन, फैंस की उम्मीदें थमीं: ‘अब इंडिया में कब?’

रोमांटिक ड्रामा अबीर गुलाल की इंडिया रिलीज पर फिर सवाल खड़े हो गए हैं। फवाद खान और वाणी कपूर स्टारर यह फिल्म 12 सितंबर 2025 को कई देशों में थिएटर में पहुंची, लेकिन भारत की स्क्रीन खाली रहीं। 26 सितंबर को घरेलू रिलीज की खबरें आईं तो सोशल मीडिया पर चर्चा तेज हो गई। कुछ ही घंटों में प्रेस इंफॉर्मेशन ब्यूरो (PIB) के फैक्ट-चेक हैंडल ने इन दावों को खारिज कर दिया और साफ कहा—ऐसी कोई सरकारी मंजूरी नहीं दी गई है।

यह मोड़ इसलिए अहम है क्योंकि बीते हफ्ते उद्योग से जुड़े सूत्रों ने बताया था कि यूके स्थित प्रोडक्शन बैनर इंडियन स्टोरीज लिमिटेड, भारत में शांत बॉक्स ऑफिस विंडो देखते हुए 26 सितंबर का स्लॉट देख रहा है। तर्क ये था कि सरल, मीठी प्रेम कहानी को बिना बड़े टकराव और भारी प्रतिस्पर्धा के लाभ मिल सकता है। PIB की प्रतिक्रिया के बाद यह संभावना फिलहाल ठंडी पड़ती दिख रही है।

फिल्म की यात्रा शुरू से आसान नहीं रही। मेकर्स ने शुरुआती योजना के मुताबिक 9 मई 2025 को रिलीज तय की थी। 22 अप्रैल को पहलगाम आतंकी हमले के बाद माहौल बदला, और क्रॉस-बॉर्डर सहयोग पर बहस फिर उभर आई। 2016 के उरी हमले के बाद जैसा हुआ था, वैसा ही माहौल—पाकिस्तानी कलाकारों पर कड़ी आपत्तियां—फिर से दिखा। इस बार भी फेडरेशन ऑफ वेस्टर्न इंडिया सिने एम्प्लॉइज (FWICE) ने पाकिस्तानी कलाकारों और तकनीशियनों के साथ काम पर रोक जैसी अपीलों को दोहराया।

विवाद का असर म्यूजिक पर भी पड़ा। संगीत लेबल के अधिकार होने के बावजूद कुछ गीत यूट्यूब से हटाए गए, जिससे प्रमोशन स्ट्रैटेजी बिगड़ी। डिजिटल कैंपेन, म्यूजिक-पहले पुश और ट्रेलर-टू-रिलीज टाइमिंग जैसे बेसिक टूल्स जब अस्थिर हों, तो थिएट्रिकल प्लानिंग कमजोर पड़ती ही है।

एक और परत यहां प्रोसेस की है। फिल्मों का सार्वजनिक प्रदर्शन सेंट्रल बोर्ड ऑफ फिल्म सर्टिफिकेशन (CBFC) के प्रमाणन के बिना संभव नहीं। विदेशी प्रोडक्शंस को भी यही रास्ता अपनाना पड़ता है। PIB का ‘क्लीयरेंस नहीं’ वाला बयान मूलतः यह बताता है कि सरकारी स्तर पर हरी झंडी की बात फिलहाल गलत तरीके से प्रचारित हुई—जबकि असली प्रक्रिया सेंसर प्रमाणन, फिर डिस्ट्रीब्यूटर, फिर राज्यों के एग्ज़िबिटर नेटवर्क के जरिए आगे बढ़ती है। मेकर्स या डिस्ट्रीब्यूटर्स की ओर से भारत रिलीज की कोई औपचारिक घोषणा अभी सामने नहीं आई है।

क्रॉस-बॉर्डर सिनेमा की उलझन: मिसालें, जोखिम और आगे की राह

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सीमा-पार कंटेंट को लेकर भारतीय बाजार का इतिहास उलझा रहा है। 2016 में ‘ऐ दिल है मुश्किल’ के वक्त विरोध प्रदर्शन हुए थे, लेकिन अंततः फिल्म रिलीज हुई। वहीं 2022 में पाकिस्तानी ब्लॉकबस्टर ‘द लीजेंड ऑफ मौला जट्ट’ के भारत में संभावित प्रदर्शन की चर्चाएं हुईं, पर टिकट खिड़की तक पहुंच नहीं सका। ऐसे केस दिखाते हैं कि राजनीतिक तनाव बढ़ते ही थिएट्रिकल रूट सबसे पहले बाधित होता है।

व्यापार की भाषा में, एक स्टार-ड्रिवन रोमांटिक ड्रामा को भारत में मध्यम से बड़े शहरों के मल्टीप्लेक्स सर्किट्स में शुरुआती ओपनिंग मिल सकती है—अगर रिलीज को लेकर विवाद शांत रहे और मार्केटिंग समय पर हो। ‘अबीर गुलाल’ के लिए चुनौती यह है कि स्टार फवाद खान की भारत में आठ साल बाद वापसी की जिज्ञासा तो है, मगर बहस का शोर उस जिज्ञासा को बॉक्स ऑफिस तक पहुंचने से रोक सकता है।

मेकर्स के सामने तीन संभावित रास्ते दिखते हैं। पहला, थिएट्रिकल रिलीज के लिए CBFC प्रमाणन, पैन-इंडिया डिस्ट्रीब्यूशन टाई-अप और राज्यों के स्तर पर संवाद—ताकि किसी तरह की आखिरी मिनट की अड़चन न आए। दूसरा, सीमित शहरों या चुने हुए राज्यों में चरणबद्ध रिलीज, जिससे माहौल का टेस्ट भी हो और जोखिम भी सीमित रहे। तीसरा, सीधे ओटीटी या हाइब्रिड मॉडल—जहां प्लेटफॉर्म जियो-रिस्ट्रिक्शन के जरिए संवेदनशील बाजारों के लिए अलग रणनीति अपनाते हैं।

इंडस्ट्री में एक व्यावहारिक चिंता ये भी है कि जब संगठित कर्मचारी संघ और थिएटर चेन किसी प्रोजेक्ट पर खुलकर असहजता जताते हैं, तो प्रदर्शकों के लिए सुरक्षा और संपत्ति-हानि का जोखिम बढ़ता है। इसके चलते कई बार फिल्म तकनीकी रूप से रिलीज-रेडी होते हुए भी शोज़ नहीं मिलते। 2016 के बाद से कई वितरकों ने ऐसे मामलों में ‘वेट-एंड-वॉच’ की नीति अपनाई है—पहले शांत माहौल, फिर शो अलॉटमेंट।

दूसरी तरफ, दर्शकों का रुझान साफ है—अच्छी कहानी और स्टार-पुल हो तो सीमा-पार भी कंटेंट अपना बाजार ढूंढ़ लेता है। लेकिन थिएट्रिकल बिजनेस में ‘टाइमिंग सब कुछ’ होती है। प्रमोशनल ड्राइव बाधित हो, संगीत गायब हो, और रिलीज की तारीख पर सार्वजनिक भ्रम हो—तो शुरुआती वीकेंड का मोमेंटम खोना आसान है, जिसे बाद में रिकवर करना कठिन पड़ता है।

मेकर्स—विवेक बी. अग्रवाल, रज़ा नमाज़ी और फिरूज़ी खान—के लिए यह प्रोजेक्ट प्रतीकात्मक भी है। फवाद खान की भारतीय स्क्रीन पर वापसी का अर्थ केवल एक स्टार का लौटना नहीं, बल्कि सहयोग के एक नए अध्याय की संभावना भी है। लेकिन इस संभावना को संवेदनशील माहौल में आगे बढ़ाने के लिए स्पष्ट कम्युनिकेशन, प्रक्रिया-पालन और स्थानीय पार्टनर्स के साथ भरोसेमंद तालमेल जरूरी है।

अब सबसे बड़ा सवाल—आगे क्या? सार्वजनिक स्तर पर अगला ठोस संकेत तभी मिलेगा जब या तो मेकर्स प्रमाणन और रिलीज रोडमैप साझा करें, या कोई प्रमुख डिस्ट्रीब्यूटर आधिकारिक कैलेंडर में तारीख दर्ज करे। तब तक दर्शकों की जिज्ञासा बनी रहेगी, पर बुकिंग काउंटर खुले बिना उत्साह का हिसाब नहीं लगाया जा सकता।

फिलहाल PIB के खंडन ने इतना साफ कर दिया है कि 26 सितंबर की खिड़की बंद है। अगर फिल्म को भारत आना है तो उसे नियमनुशासन की चेकलिस्ट पार करनी होगी—और माहौल के लिहाज से भरोसा जीतना होगा। उद्योग के लोग इसे केवल एक फिल्म की रिलीज नहीं, बल्कि क्रॉस-बॉर्डर सहयोग की दिशा में टेस्ट केस के तौर पर भी देख रहे हैं।