एम.आर. नारायणस्वामी
नई दिल्ली, 2 जून (आईएएनएस)। क्या कभी माचिस की डिब्बियों पर भगवान शिव, विष्णु और हनुमान या देवी काली तथा देवी सरस्वती को देखा है? और वह भी ऑस्ट्रिया, स्वीडन तथा जापान में बनी माचिस की डिब्बियों पर?
भारतीय बाजारों में जब पिछली सदी की शुरुआत में माचिस की डिब्बियां उतरीं तो इनके लेबल ऐसे चित्रों एवं रंगों के होते थे, जो सामान्य भारतीय को आकर्षित कर सके।
तब से भारत में निर्मित और आयातित माचिस की डिब्बियों के हजारों आकर्षक लेबल की प्रदर्शनी यहां इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में लगाई गई है, जो पिछले एक सदी के इसके समृद्ध इतिहास को दर्शाते हैं।
माचिस की डिब्बियों का संग्रह करने के शौकीन पेशे से वास्तुविद गौतम हेमेडी (59) के अनुसार, "स्वीडन माचिस का डिब्बियों का सबसे बड़ा निर्माता है।"
जनवरी 2012 से माचिस की डिब्बियां जुटाने वाले गौतम अब तक इसका एक बड़ा संग्रह तैयार कर चुके हैं।
उनके अनुसार, ऑस्ट्रिया और जापान के साथ-साथ स्वीडन को माचिस की डिब्बियां बनाने में महारत हासिल है और इसके पास इससे संबंधित समृद्ध प्रौद्योगिकी भी है। भारत इस संबंध में एक आकर्षक बाजार रहा है, जहां इसकी खूब मांग रही है, जबकि निर्माण न के बराबर।
ऑस्ट्रिया से माचिस की डिब्बियों का सबसे पहले आयात करने वालों में कलकत्ता (अब कोलकाता) की भारतीय कंपनी ए.एम. एसभोय शमिल है।
गौतम ने आईएएनएस को बताया कि शुरुआती माचिस की डिब्बियों के निर्माण पर एक पैसे की लागत आती थी। बहुत से गैर-धार्मिक लेबल थे, जैसे-घड़ी, तीन बाघ, गाय का सिर, हाथी, दो हिरण, कुल्हाड़ी, कैंची, लैंप, घोड़ा, विमान, चाय का कप और चाबी।
बाद में हालांकि स्वीडन, ऑस्ट्रिया और जापान की कंपनियों को लगा कि भारतीय खरीदारों को धार्मिक प्रतीक चिह्नें के माध्यम से अधिक लुभाया जा सकता है।
इसके बाद स्वीडन निर्मित माचिस की डिब्बियों के लेबल पर हिन्दू देवी-देवताओं लक्ष्मी, गायत्री, दुर्गा, विष्णु, त्रिमूर्ति, गणेश, लव-कुश और कृष्ण के नहाने गईं गोपियों के कपड़े चुराकर पेड़ों पर बैठे चित्र उकेरे जाने लगे।
वहीं, जापानी माचिस की डिब्बियों पर ब्रह्मा, विष्णु, शिव और काली के चित्र बनाए जाने लगे।
ऑस्ट्रिया भी इसमें पीछे नहीं रहा और यहां निर्मित माचिस की डिब्बियों के लेबल पर भी हनुमान तथा लक्ष्मी के चित्र बनाए जाने लगे।
जब भारत में माचिस की डिब्बियों का निर्माण होने लगा तो धार्मिक लेबल का चलन और बढ़ा। अब इन पर कृष्ण और राधा, नटराज, शिवलिंग, नंदी, देवी दुर्गा, शिव और गणेश तथा कृष्ण के बाल्यावस्था तथा अन्य धार्मिक चित्रों को उकेरा जाने लगा।
भारत में स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान माचिस की डिब्बियों पर राष्ट्रवादी लेबल भी खूब देखे गए। इस दौरान माचिस की डिब्बियों पर अशोक स्तंभ, अशोक चक्र, अविभाजित भारत के मानचित्र के साथ-साथ 'आजादी की सुबह', 'स्वतंत्र भारत' तथा 'जय हिंद' जैसे नारे भी लिखे दिखे।
माचिस की डिब्बियों पर महात्मा गांधी, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शिवाजी, भगत सिंह, गोपाल कृष्ण गोखले तथा पंडित जवाहरलाल नेहरू के चित्र भी उकेरे गए, जिनमें से कुछ संयोग से जापान में बने थे।
माचिस की डिब्बियों पर मैसूर, बड़ौदा, त्रावणकोर, ग्वालियर, जम्मू एवं कश्मीर, अलवर, बीकानेर, धार, इंदौर, जयपुर तथा पटियाला के तत्कालीन राजाओं के चित्र भी बनाए गए थे।
ऑस्ट्रिया निर्मित माचिस की डिब्बियों के लेबल पर इस रूप में भारत की झलक भी देखने को मिलती थी कि इसमें लालकिला तथा आगरा के किले सहित देशभर के कई महत्वपूर्ण स्थलों को चित्रों के जरिये दर्शाया गया।
आजादी के बाद भारत सरकार ने परिवार नियोजन तथा बचत के महत्व से संबंधित संदेशों के प्रसार के लिए माचिस की डिब्बियों के लेबल का इस्तेमाल किया। निजी कंपनियों को भी अपने उत्पादों के प्रचार के लिए माचिस की डिब्बियां एक सस्ता संसाधन जान पड़ी।
गौतम यूं तो आठ साल की उम्र से ही माचिस की डिब्बियों के लेबल जुटाना चाहते थे, लेकिन यह 2012 से ही संभव हो पाया, जब उन्होंने कुछ संग्रहों को खरीदने का निर्णय लिया।
आज उनके पास दियासलाई उद्योग के करीब 25,000 लेबल, रैपर और कार्डबोर्ड हैं। यह उनकी पहली प्रदर्शनी है, जो शुक्रवार को समाप्त हो रही है।
हालांकि आज भारत में माचिस की डिब्बियों के लेबल बहुत ही नीरस और फीके हो रहे हैं। इस बारे में गौतम का कहना है, "आज भारत में दियासलाई उद्योग मुख्य रूप से तमिलनाडु में ही रह गया है। संबंधित उद्योग जगत रंगीन डिजाइनों पर बहुत ध्यान नहीं दे रहा है, क्योंकि इस पर लागत अधिक आती है, जबकि अधिकांश माचिस की डिब्बियां केवल एक रुपये में बिकती हैं।"
हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि भारत से निर्यात होने वाली माचिस की डिबियों का स्वरूप बिल्कुल अलग होता है और ये बहुत आकर्षक होती हैं।
--आईएएनएस