विभा वर्मा
नई दिल्ली, 19 अगस्त। दुनियाभर के कई देशों में अपनी नृत्य प्रस्तुति दे चुकीं मशहूर भरतनाट्यम नृत्यांगना बाला देवी चंद्रशेखर ने हाल ही में राष्ट्रीय राजधानी में एक कार्यक्रम 'बृह्दिश्वरा : फॉर्म टू फॉर्मलेस' में आकर्षक प्रस्तुति दी। बाला देवी का मानना है कि भारतीय लोग पश्चिम के लोगों की नकल करते हैं, लेकिन पश्चिमी लोग हमारी संस्कृति की ओर आकर्षित हो रहे हैं। वे हमारे रहन-सहन को अपना रहे हैं, ऐसे में भारतीयों को अपनी संस्कृति को संरक्षित करना चाहिए।
इस प्रस्तुति से इतर उन्होंने आईएएनएस से बात की। यह पूछे जाने पर कि उन्हें किस चीज ने शास्त्रीय नृत्य में आने के लिए प्रेरित किया तो उन्होंने कहा, "छोटी उम्र से ही मैं इनफॉर्मल तौर पर इसे सीखती थी। जब मैं 10-11 साल की थी तो स्टेज परफॉर्मेस होती थी, तभी से मुझे शास्त्रीय नृत्य से लगाव हो गया। मेरे पुरखे संस्कृत विद्वान थे और मेरी मां अच्छी म्यूजिशिन थीं। घर में कला का माहौल देखकर मेरे अंदर रुचि जागी। मेरे मायके और ससुराल पक्ष दोनों के लोग संस्कृत विद्वान थे। कार्पोरेट की दुनिया में मैंने 22 साल से ज्यादा समय बिताए और नृत्य ने मुझे कॉर्पोरेट लाइफ में मदद दिया और इसी तरह कार्पोरेट लाइफ और हर तरह के हालात में ने नृत्य में मुझे मदद किया।"
बाला देवी इन दिनों 'बृहदिश्वरा' परफॉर्म कर रही हैं, इसमें 10वीं सदी की महिला को दर्शाया गया है जो अपने जीवन को ईश्वर के चरणों में समर्पित कर देती है।
यह पूछे जाने पर कि तेजी से पैठ बनाते वेस्टर्न डांस कल्चर और बॉलीवुड आइटम के दौर में वह शास्त्रीय नृत्य को कहां देखती हैं, तो उन्होंने कहा, "ये बात सही है लेकिन आज की युवा पीढ़ी को अगर हम समझाए, उन्हें उनके इतिहास से परिचित कराए तो वे बहुत मोटिवेट होते हैं तो वे बहुत देखने के लिए। उन्हें एजुकेट करना-समझाना हमारा काम होता है, तो ये बहुत अहम होता है। अभी मैं पूरे यूरोप में नीदरलैड्स, लंदन, लाटविया, साइप्रस में मैं प्रोग्राम करके आई हूं तो बहुत सारे युवाओं ने पॉजिटिव रिस्पॉन्स दिया यहां तक की ब्रॉडवे में भी काफी सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। वे इसे बहुत लगन से देखते थे।"
उन्होंने कहा, "मेरी एकेडमी में भी बहुत सारे बच्चे आते हैं। 12-14 साल की बिटिया लोग आती हैं। जब एक बार उनके अंदर लगन हो जाती है तो फिर हमको कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ती है। लेकिन जब हम उन तक एक सही तरीके से अपनी पहुंच बनाते हैं तो वो बहुत समझते हैं और जब उनमें एक लगन आ जाता है तो फिर हमें कुछ करने की जरूरत ही नहीं पड़ती है। वो प्रेरित हो जाते हैं, तो मुझे लगता है कि उन तक पहुंच बनाना हमारी एक अहम जिम्मेदारी है।"
बाला देवी ने कहा, "वेस्टर्न डांस आसानी से इंटरनेट पर उपलब्ध है तो हम इसे (शास्त्रीय नृत्य) छोटे स्निपेट्स डालकर उन तक पहुंच बनाने की कोशिश कर रहे हैं। अगर उन्हें 45 मिनट का नहीं देखना तो वे 5 मिनट का देख सकते हैं, 10 मिनट का देख सकते हैं। बस स्टोरी लाइन समझ में आनी चाहिए। तो उन्हें इस तरह से देना चाहिए, जैसा कि वे चाहते हैं। हमें बस युवाओं के मन को समझने की जरूरत है।"
बाला देवी अपनी सफलता का श्रेय अपनी जुनून और परिवार को देती हैं। उन्होंने कहा, "जहां जुनून होता है, वहां कैसे न कैसे हो ही जाता है। लेकिन एक अच्छा जीवनसाथी होना बहुत मायने रखता है। मैं अपने पति चंद्रशेखर जी और परिवार की बहुत शुक्रगुजार हूं। मेरे दोनों बेटों और बहू ने भी पूरा साथ दिया। जब हमारी पैशन बहुत सच्ची होती है, तो परिवार, समाज, समुदाय हर कोई आपको सपोर्ट करने लगता है।"
बाला देवी ने कहा कि युवाओं को दिए संदेश में कहा कि उन्हें भारत की संस्कृति व मूल्यों को संरक्षित कर अपनी पहचान कायम रखनी चाहिए।
उन्होंने कहा, "भारत की संस्कृति बहुत खास होती है, तो दुनियाभर भारत को इस हिसाब से देखता है तो युवाओं को यह समझना है कि पश्चिमी सभ्यता कि नकल करना बहुत आसान होता है, बाल कटाना, शॉर्ट पहनना बहुत आसान है, लेकिन वेस्ट में मैं जाती हूं, यूरोप जाती हूं तो वहां की महिलाएं चोटी बनाती हैं, बाल में फूल लगाती हैं, बिंदी लगाती हैं, बिल्कुल उल्टा हो गया है। वे सोचती हैं कि आने वाली पीढ़ी जब पूछे तो उन्हें अपनी संस्कृति व जड़ों के बारे में गर्व से बताएं। भारतीयों को अपनी संस्कृति को संरक्षित करना चाहिए, उन्हें अपनी भाषा, अपने मूल्यों, परंपरा अपनी संस्कृति मालूम होनी चाहिए। अपनी भारतीयता की पहचान कायम रखनी चाहिए। पूरी दुनिया हमारी संस्कृति को सराहती है।"
बाला देवी 'विजुअल' को किसी चीज से जुड़ने का सबसे अच्छा माध्यम मानती हैं उन्होंने कहा, "मेरी नजर में किसी चीज से कम्युनिकेट करने का सबसे अच्छा माध्यम विजुअल है और जब नृत्य क्लासिकल वे से किया जाता है..तो इसकी पहुंच बड़े पैमाने पर दर्शकों तक है और जो कुछ भी जो आप किताबों में पढ़ते हैं, चाहे वह कविता हो या कहानी हो, उसकी अपेक्षा सामने से देखकर किसी चीज को समझना ज्यादा आसान होता है, तो इसलिए मैंने विजुअल कम्युनिकेशन के इस माध्यम को चुना।"
यह पूछे जाने पर कि नृत्य को अध्यात्म से जोड़े जाने को आप किस नजरिए से देखती हैं, उन्होंने कहा, "यह दैवीय है, अध्यात्म को महसूस किया जा सकता है, मगर इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती। लोग इसे एस्थेटिक परसेप्शन से देखते हैं। बस डिग्निटी होनी चाहिए। यह महत्वपूर्ण है। हमें दर्शकों तक गरिमा के साथ पहुंच बनानी चाहिए तो मुझे लगता है कि आपके प्रदर्शन में आध्यात्मिकता के साथ गरिमा होनी चाहिए।"
उन्होंने कहा कि वह अब तक सब कुछ गरिमा के साथ करती आई है। बाला देवी ने कहा, "दुनिया के हर कोने में गई हूं और मैंने दर्शकों को आकर्षित करने के लिए कोई मिमिक्री या कुछ ऐसा-वैसा नहीं किया। मैं एक प्योरिस्ट हूं और लोगों ने मुझे वास्तव में सराहा है।"
भारतीयों को अपनी संस्कृति बचानी चाहिए : बाला देवी चंद्रशेखर
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